कुशीनगर(राष्ट्र की परम्परा)
जब से होश संभाला तब से यही सुनते आई हूं की स्त्री की कोई जाति नहीं होती है।बड़े-बड़े विद्वान लोगों से सुना है की स्त्री का अस्तित्व उस बहते हुए जल के समान है जिसका कोई नाम नहीं है,पर जब वह किसी नदी और समुद्र में जाकर मिल जाती है तब उसका अस्तित्व जीवंत हो उठता है। उस नदी और समुद्र के साथ। अन्यथा उसका स्वयं कोई अस्तित्व नहीं है। क्या ये तथ्य स्त्री के अस्तित्व के साथ न्याय करने के लिए उचित हैं?
जब तक एक अविवाहित लड़की अपने पिता के साथ रहती है उसे अपने पिता के कुल, गोत्र के नाम से जाना जाता है।विवाहोपरांत वही लड़की अपने वर पक्ष यानी कि अपने पति के कुल नाम और गोत्र के साथ जानी जाने लगती है। यानी की जिन विद्वान जनों के मुंह से स्त्रियों के अस्तित्व के बखान को सुनते आयी हूं कि स्त्री का कोई अस्तित्व ही नहीं होता यह बातें एक लड़की के विवाह के बाद उसका कुल और गोत्र बदल जाने के बाद सत्य साबित हो जाती है।अगर एक क्षत्रिय कन्या ब्राह्मण लड़के से विवाह कर लेती है तो वह फिर क्षत्रिय ही नहीं रह जाती गोत्र तो छोड़िए उसकी जाति ही बदल जाती है, यानी कि वह अब क्षत्रिय से ब्राह्मण बन जाती है जबकि लड़का आज भी ब्राह्मण ही है।
इसी प्रकार स्त्रियों को लेकर एक और बातें होती हैं की कन्यादान महादान। यानी की एक कन्या का उसके माता-पिता विवाह के दौरान अपनी कन्या का दान कर देते हैं और महादान के भागी बन जाते हैं।यानी की कन्यादान करते ही उस लड़की को अपने माता-पिता के पास से हटा कर वर के बायांग बिठा दिया जाता है।कन्यादान के तत्क्षण बाद ही लड़की का उसके माता-पिता के कुल परिवार से अस्तित्व समाप्त हो जाता है,और मांग में सिंदूर पड़ते ही वर पक्ष के कुल परिवार के संग जुड़ जाता है, उस लड़की का अस्तित्व। सामाजिक नियम के तहत एक स्त्री कठपुतली बन जीवन पर्यंत बायांग-दायांग होती रहती है।
पर इन सब सामाजिक नियम और संस्कार के तहत एक लड़की का अस्तित्व मिटता है और फिर बनता है।
पर उन स्त्रियों का क्या जिनका विवाह-विच्छेद हो जाता है। मेरा प्रश्न यही है की जिन लड़कियों का विवाह विच्छेद हो जाता है यानी की तलाक हो जाता है फिर वह किस कुल परिवार किस गोत्र की मानी जानी चाहिए?फिर उन्हें किस कुल परिवार गोत्र का माना जाता है? पिता के कुल गोत्र का तो माना नहीं जा सकता है क्योंकि माता-पिता ने अपने कन्या का कन्यादान जो कर दिया है!कन्यादान करते ही उसका अपने पिता के कुल परिवार से अस्तित्व मिट चुका था और विवाह विच्छेद के बाद पति के कुल परिवार गोत्र से उसका संबंध मिट जाता है।तो फिर ऐसी स्त्रियां किस जाति की कहलानी चाहिए? किस गोत्र की कहलानी चाहिए? किस कुल की कहलानी चाहिए?
क्या विवाह-विच्छेद वाली स्त्रियां यानी कि तलाकशुदा स्त्रियों की कोई जाति नहीं होती?उनका कोई गोत्र नहीं होता? क्या तलाकशुदा स्त्रियां हमारे इस दकियानूसी नियम और समाज के तहत गुमनाम हो जाती हैं?या उनका अभी भी कोई अस्तित्व जीवंत अवस्था में है? और अगर उनका कोई अस्तित्व,जाति,गोत्र अगर जिंदा है तो वह क्या है?
हमारे वर्ण व्यवस्था को चार भागों में बांटा गया है….. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।यानी की सबसे निम्न स्थान यानी की अंतिम स्थान शूद्र को प्राप्त है। फिर अगर विवाह-विच्छेद वाली स्त्रियों के अस्तित्व के बारे में हमारे विद्वान जनों को पता ही नहीं उनके लिए कोई नियम ही नहीं बनाए गए सामाजिक विद्वानों द्वारा,तो फिर शुद्र को भी उच्च स्थान प्राप्त होना चाहिए और हमारी वर्ण व्यवस्था को चार के जगह पांच भागों में बांटा जाना चाहिए जहां पर अगर सबसे निम्न स्थान देना ही है, तो विवाह-विच्छेद वाली स्त्रियों को ही दिया जाए जिनके अस्तित्व के बारे में कोई नियम ही नहीं बनाए गए? जिन्हें बड़े धिक्कार और गिरे हुए नजरों के साथ समाज में देखा जाता है।
विवाह-विच्छेद वाली स्त्रियों को उनका पीहर भी अपनाने से इनकार कर देता है। ऐसा लगता है कि मानो वह लड़की अगर उनके कुल परिवार में अगर अब रहेगी तो उन्हें कोई छूत लग जाएगी।विवाह विच्छेद वाली स्त्रियों को किसी मांगलिक कार्यक्रम से भी दूर ही रखा जाता है लोगों को ऐसा लगता है कि कहीं ऐसी लड़कियों का साया मांगलिक कार्यक्रम में पड़ा तो कोई अनहोनी ना हो जाए।ऐसी स्त्रियों के लिए लिए वह समय एक विधवा के पीड़ा से भी ज्यादा भयानक और गंभीर होता है।
ऐसे सामाजिक नियमों का क्या फायदा जो एक जिंदा लड़की को जिंदा लाश बना कर जीने के लिए जीवन पर्यंत विवश कर देता है। आज हमारे देश में महिला सशक्ति करण,अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के अधिकार की बातें होती हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी महिलाओं का सम्मान साल में एक दिन बखूबी बड़े-बड़े फोटो और टैग के साथ किया जाता है, पर हकीकत इन सब चीजों से बिल्कुल इतर है। अपने घर के अंदर पीड़ित महिला के संग अन्याय और घर से बाहर आकर महिला सशक्तिकरण की बातें यह दोगला चरित्र कभी भी महिला सशक्तिकरण और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मंशा को धरातल पर उतार नहीं पाएगा।
21वीं सदी के दौर में भी हमारे इस भारतीय आधुनिक समाज में विवाह-विच्छेद वाली स्त्रियां समाज के ताने-बाने से काफी ज्यादा पीड़ित है। अपने अस्तित्व को जिंदा रखने के लिए समाज से सामाजिक नियमों से आज भी उनकी लड़ाई उनका संघर्ष अनवरत जारी है।समाज से उनका एक ही प्रश्न है कि क्या वह अभी भी किसी कुल,जाति,गोत्र से संबंधित हैं या अब वह इन सब चीजों से विहीन हो गई है? तो फिर विवाह-विच्छेद वाली स्त्रियां कौन है क्या है उनका अस्तित्व?क्या हमारा समाज विवाह-विच्छेद वाली स्त्रियों को जीवित मानता भी है या नहीं? या विवाह विच्छेद के साथ ही हमारा समाज उस स्त्री का पिंडदान कर देता है?निश्चय ही इस विषय पर आत्म मंथन की आवश्यकता है।
मांडवी सिंह वरिष्ठ लेखिका
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