
सुरक्षित कैंपस, सम्मानजनक कार्यस्थल
शिक्षण संस्थान ज्ञान देने के साथ-साथ आदर्श आचरण के केंद्र भी होते हैं। लेकिन जब यहां कार्यरत महिला शिक्षिकाएं असुरक्षा, अशोभनीय व्यवहार और अनुचित दबाव का सामना करती हैं, तो यह केवल एक व्यक्ति नहीं, पूरे माहौल की गरिमा को चोट पहुंचाता है।
महिला सुरक्षा के लिए केवल कानून होना पर्याप्त नहीं, बल्कि संस्थानों में सख़्त नियम और रोकथाम के उपाय जरूरी हैं। महिला स्टाफ रूम और शौचालय अलग हों, परिसर में हर जगह सक्रिय कैमरे लगें, खाली पीरियड में महिला और पुरुष शिक्षक अपने-अपने स्टाफ रूम में ही रहें, और एकांत में अनावश्यक बातचीत पर रोक लगे। कार्य-संबंधी संदेश कार्य समय में ही भेजे जाएं, निजी चैटिंग पर प्रतिबंध हो।
हर संस्थान में आंतरिक शिकायत समिति सक्रिय रहे, गोपनीय शिकायत तंत्र हो, और दोषी पाए जाने पर तुरंत कार्रवाई हो। साथ ही, साल में कम से कम एक बार कार्यस्थल आचरण और कानून पर प्रशिक्षण हो, ताकि सभी को सम्मान और मर्यादा का महत्व समझ में आए।
सुरक्षित कैंपस और सम्मानजनक कार्यस्थल केवल महिला का अधिकार नहीं, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता और समाज की गरिमा का आधार है। अब समय है चुप्पी तोड़ने और सख़्त कदम उठाने का।
शिक्षण संस्थान केवल पढ़ाई-लिखाई की जगह नहीं होते, बल्कि समाज का आईना और भविष्य का निर्माण स्थल होते हैं। यहां का वातावरण सीधे तौर पर बच्चों की सोच, शिक्षकों की प्रेरणा और पूरे संस्थान की प्रतिष्ठा को प्रभावित करता है। एक स्वस्थ और सम्मानजनक कार्यस्थल कोई विलासिता नहीं, बल्कि बुनियादी आवश्यकता है। विशेष रूप से महिला शिक्षिकाओं और महिला कर्मचारियों के लिए यह सुनिश्चित करना कि वे अपने कार्यस्थल पर सुरक्षित और सम्मानित महसूस करें, किसी भी संस्थान की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
हाल के वर्षों में कई घटनाएं सामने आई हैं, जहां महिला शिक्षिकाओं ने अपने ही सहयोगियों या वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किए गए अनुचित व्यवहार, अशोभनीय संदेश और निजी तौर पर अनुचित हरकतों की शिकायत की है। देशभर से समय-समय पर ऐसी खबरें आती रही हैं—कभी खाली पीरियड में एकांत में लंबी बातचीत, कभी व्यक्तिगत नंबर पर अनावश्यक और निजी संदेश, कभी नज़र और शब्दों से अपमानजनक संकेत, तो कभी काम में मदद या पदोन्नति के बदले अनुचित मांग। ये सब केवल व्यक्तिगत आचरण की गड़बड़ी नहीं हैं, बल्कि कार्यस्थल की गरिमा और सुरक्षा को तोड़ने वाली गंभीर प्रवृत्तियां हैं।
ऐसी घटनाएं केवल एक महिला के मानसिक स्वास्थ्य को चोट नहीं पहुंचातीं, बल्कि पूरे वातावरण को विषैला बना देती हैं। असुरक्षा का भाव महिला शिक्षिकाओं के आत्मविश्वास को कमजोर करता है। वे हमेशा सतर्क और तनावग्रस्त रहती हैं, जिससे उनका ध्यान पढ़ाई से भटकता है। बार-बार अपमानजनक स्थिति का सामना करने से उनका आत्मसम्मान टूटने लगता है। कई महिलाएं ऐसे माहौल से बचने के लिए नौकरी छोड़ देती हैं या स्थानांतरण की मांग करती हैं। इसका असर छात्रों पर भी पड़ता है, क्योंकि असुरक्षित और असंतुष्ट शिक्षक पूरी ऊर्जा और सकारात्मकता के साथ पढ़ाने में सक्षम नहीं रहते।
महिलाओं की कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत में यौन उत्पीड़न (कार्यस्थल पर) अधिनियम, 2013 यानी “पॉश अधिनियम” लागू है। इसके तहत प्रत्येक संस्थान में आंतरिक शिकायत समिति का गठन अनिवार्य है, जिसकी अध्यक्ष महिला हो और आधे से अधिक सदस्य महिलाएं हों। शिकायत दर्ज होने पर सात कार्य दिवस में प्रारंभिक सुनवाई और नब्बे दिनों में जांच पूरी करनी होती है। दोषी पाए जाने पर प्रशासनिक और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। शिकायतकर्ता के साथ किसी भी प्रकार के प्रतिशोध को रोकना भी संस्थान की जिम्मेदारी है। दुर्भाग्य से, अनेक स्थानों पर यह समिति केवल कागजों में ही सीमित रहती है और शिकायतें या तो दबा दी जाती हैं या पीड़ित को चुप करा दिया जाता है।
समाधान केवल सज़ा देने में नहीं, बल्कि रोकथाम में है। इसके लिए कुछ बुनियादी कदम हर शैक्षणिक संस्थान में तुरंत लागू किए जाने चाहिए। महिला शिक्षिकाओं के लिए अलग और सुरक्षित स्टाफ रूम होना चाहिए, ताकि वे अपने कार्य से जुड़ी चर्चाएं और आवश्यक बातचीत आराम से कर सकें। महिला कर्मचारियों और छात्राओं के लिए अलग, स्वच्छ और सुरक्षित शौचालय की व्यवस्था हो। परिसर के प्रमुख स्थानों, गलियारों, प्रवेश-द्वारों, खेल के मैदान और कॉमन एरिया में उच्च गुणवत्ता वाले कैमरे लगाए जाएं और वे हमेशा सक्रिय रहें। फुटेज को कम से कम नब्बे दिनों तक सुरक्षित रखा जाए और केवल अधिकृत व्यक्तियों को ही उसकी पहुंच हो।
खाली पीरियड में महिला और पुरुष शिक्षक अपने-अपने स्टाफ रूम में ही रहें। बिना किसी औपचारिक कार्य के, एकांत में लंबे समय तक बैठना या बातचीत करना प्रतिबंधित हो। शिक्षकों और सहकर्मियों के बीच निजी संदेश केवल कार्य संबंधी हों और वह भी कार्य समय में ही भेजे जाएं। देर रात या गैर-जरूरी चैटिंग पूरी तरह वर्जित हो, विशेषकर जब वह विपरीत लिंग के बीच हो। प्रत्येक सत्र की शुरुआत में कार्यस्थल पर आचरण और कानून के बारे में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं। इसमें सभी शिक्षक, गैर-शिक्षण कर्मचारी और वरिष्ठ छात्रों को शामिल किया जाए, ताकि सभी को यह समझ में आए कि कार्यस्थल पर सम्मान और मर्यादा कैसे बनाए रखी जाती है।
संस्थान में ऐसा गोपनीय तंत्र हो जहां पीड़ित बिना डर और शर्म के शिकायत दर्ज करा सके। यह ऑनलाइन पोर्टल, सीलबंद शिकायत बॉक्स या हेल्पलाइन नंबर के रूप में हो सकता है। शिकायत आने पर तुरंत जांच हो, आरोपी और पीड़ित को अलग किया जाए और दोषी पाए जाने पर बिना देरी कड़ी कार्रवाई की जाए। शिकायतकर्ता की गोपनीयता की रक्षा संस्थान की सर्वोच्च जिम्मेदारी होनी चाहिए।
महिला सुरक्षा केवल कानूनी या प्रशासनिक मामला नहीं है, यह सामाजिक सोच का भी मुद्दा है। हमें अपने बच्चों को यह सिखाना होगा कि कार्यस्थल पर सम्मान, मर्यादा और सीमाएं क्या होती हैं। स्कूलों में लैंगिक संवेदनशीलता और आत्मसम्मान पर आधारित विशेष कक्षाएं शुरू की जानी चाहिएं। समाज को यह समझना होगा कि महिला सुरक्षा किसी एक वर्ग का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे समाज और देश की गरिमा का प्रश्न है।
सुरक्षित कैंपस और सम्मानजनक कार्यस्थल कोई आदर्शवादी कल्पना नहीं, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता और संस्थान की विश्वसनीयता का आधार है। जिस स्थान पर महिलाएं खुद को सुरक्षित न महसूस करें, वहां शिक्षा का वातावरण कभी भी स्वस्थ नहीं हो सकता। यह केवल महिला का मुद्दा नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति का मुद्दा है जो अपने कार्यस्थल को गरिमा और मर्यादा से भरपूर देखना चाहता है।
अगर हम अब भी चुप रहे तो अगली घटना का इंतज़ार करना पड़ेगा और तब तक किसी का आत्मविश्वास, किसी का करियर और किसी की ज़िंदगी बर्बाद हो चुकी होगी। अब समय है चुप्पी तोड़ने का—नियम बनाने का, उन्हें कड़ाई से लागू करने का, और हर शैक्षणिक संस्थान को सचमुच सुरक्षित और सम्मानजनक कार्यस्थल बनाने का। यह केवल प्रशासन की नहीं, बल्कि हर शिक्षक, हर कर्मचारी, हर छात्र और पूरे समाज की जिम्मेदारी है। तभी हम आने वाली पीढ़ी को न केवल किताबों का ज्ञान, बल्कि जीवन की सबसे बड़ी सीख—सम्मान और सुरक्षा—भी दे पाएंगे।
-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,हिसार
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