संत कबीर नगर(राष्ट्र की परम्परा)। जिले में किसानों के द्वारा धान की फसल की कटाई अन्तिम चरण में है। हालांकि अभी कुछ दिन पहले जिले के भर में विभिन्न माध्यमों से किसानों को खेतों में पुआल आदि नहीं जलाने की नसीहत दी जा रही थी। लेकिन कृषि वैज्ञानिकों व अधिकारियों की मनाही के बावजूद किसान फसल काटने के बाद अपने खेतों में ही बेहिचक फसल अवशेष जलाने में लगे हुए हैं।
खेतों में पराली या पुआल या फसल अवशेष जलाने से जलस्तर पर तो विपरीत प्रभाव पड़ने के साथ ही मिट्टी को उपजाऊ बनाने वाले सूक्ष्म जंतु भी नष्ट हो जाते हैं। कृषि विभाग द्वारा किसानों को ऐसा नहीं करने की सलाह समय समय पर दिया जाता रहा है। सरकार भी इस पर सख्त निर्देश दिया है। तमाम निर्देश के बावजूद जिले के कुछ हिस्सों से फसल अवशेष जलाने के समाचार मिल रहे हैं।
पराली जलाने का ताजा मामला दुधारा थाना क्षेत्र के पैडी-हनुमानगंज मार्ग के पुल के पास से सामने आया है। जहां किसान सड़क किनारे ही खेतों में पराली जलाते नजर आए। पुआल के जलाने से पशुओं को चारा नहीं मिल रहा है। खेतों में गिरा अनाज जिसे पशु व पक्षी चुग कर अपना पेट भरते थे। वह भी जल जाता है। खेतों व खरपतवारों में रहने वाले छोटे कीड़े-मकोड़े जलकर मर जा रहे हैं।
पराली जलाने का विपरीत असर मानव जाति पर पड़ रहा है। अवशेष को खेतों में जलाने से जहां निकलने वाला कार्बन युक्त धुंआ वातावरण के प्रदूषण में बढ़ोत्तरी कर रहा है। तो इससे खेत के जीवांश तत्वों को काफी नुकसान पहुंच रहा है। कृषि विशेषज्ञों की माने तो खेतों में पुआल जलाने पर मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है। एक अधययन के अनुसार एक टन पुआल जलाने पर 1460 किलोग्राम कार्बन डाई आक्साइड, 60 किलोग्राम कार्बन मोनो ऑक्साइड, 2 किलोग्राम सल्फर डाइऑक्साइड गैस निकलता है। साथ ही खेत की उर्वरता घट जाती है। पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है।जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता है।

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