छठ पूजा के लिए सजे बाजार लोगों ने की जमकर खरीदारी
नवनीत मिश्र
संत कबीर नगर (राष्ट्र की परम्परा)। पूर्वांचल और बिहार का प्रसिद्घ लोक आस्था का महापर्व छठ शुक्रवार से नहाय खाय से शुरू होगा। छठ पर्व मनाने के लिए हजारों श्रद्घालु नदी व जलाशयों के किनारे छठी मईया की पूजा के लिए साफ सफाई की और इसी के साथ चार दिन चलने वाला छठ महोत्सव प्रारंभ हो गया। 28 अक्टूबर शुक्रवार, पहले दिन नहाय खाय, 29 अक्टूबर शनिवार दूसरे दिन खरना, 30 अक्टूबर रविवार, तीसरे दिन सूर्यास्त को अर्घ्य और 31 अक्टूबर 2022 को चौथे दिन सूर्योदय को जल चढ़ाकर पूजा की जाएगी। छठी मईंया और सूर्य देव को समर्पित चार दिन तक चलने वाले इस यह महापर्व में व्रती लगातार 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। जिसमे हर दिन का अपना खास महत्व है। पूजा-पाठ, खान-पान के साथ महिलाएं छठी मईया को प्रसन्न करने के लिए छठ के गीत और भजन गाती है।
खरना के साथ छठ पूजा की शुरूआत एक बार फिर होगी। इस दिन घरों में अनेक प्रकार के पकवान बनाए जाएंगे। पहला भोजन लौकी और चावल का किया गया। मुख्य पर्व दिन हजारों महिलाएं पवित्र डाले लेकर गीत गाते हुए नदी तट या जलाशयों पर जाएंगी। जहां अस्त होते सूर्य को अर्घ्य प्रदान करेंगी। पर्व का समापन अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ होगा।
पीतल और तांबे के पात्रों से करें अर्घ्य
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ पर्व के दौरान पीतल और तांबे से बने पात्र से अर्घ्य देना चाहिए। तांबे के पात्र में दूध डालकर अर्घ्य नहीं देना चाहिए। छठ मूलतः शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का महापर्व है।
नहाय खाय से सप्तमी के पारण तक उन व्रतियों पर छठी माता की कृपा बरसती है जो श्रद्धापूर्वक व्रत करते हैं।
वैसे तो यह पर्व साल में चैत्र शुक्ल षष्ठी और कार्तिक शुक्ल षष्ठी दो तिथियों को भी मनाया जाता है। परंतु कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाए जाने वाले पर्व को मुख्य माना जाता है। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ माई पूजा और सूर्य षष्ठी पूजा आदि नामों से जाना जाता है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा या उपवास रखने में सबके अपने-अपने कारण होते हैं। लेकिन मुख्य रूप से छठ पूजा सूर्य देव की उपासना कर उनकी कृपा पाने के लिए की जाती है। इनकी कृपा से सेहत अच्छी रहती है। घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है। सूर्य जैसी श्रेष्ठ संतान के लिए भी इस दिन उपवास रखा जाता है।
देवी षष्ठी की उत्पत्ति
छठ देवी को सूर्य देव की बहन बताया जाता है। परंतु छठ व्रत कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई है। देवसेना अपने परिचय में कहती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई है। यही कारण है कि मुझे षष्ठी कहा जाता है। यदि आप संतान प्राप्ति की कामना करते हैं तो मेरी विधिवत पूजा करें। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को करने का विधान बताया गया है।
पौराणिक ग्रंथों में इसे रामायण काल में श्रीराम के अयोध्या आने के पश्चात मां सीता के साथ मिलकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करने से भी जोड़ा जाता है। महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पूर्व सूर्योपासना से पुत्र की प्राप्ति से भी इसे जोड़ा जाता है। सूर्यदेव के अनुष्ठान से उत्पन्न कर्ण जिन्हें अविवाहित कुंती ने जन्म देने के बाद नदी में प्रवाहित कर दिया था। वह भी सूर्यदेव के बहुत बड़े उपासक थे। वे घंटों जल में रहकर सूर्य की पूजा करते थे। मान्यता है कि कर्ण पर सूर्य की असीम कृपा हमेशा बनी रही। इसी वजह से लोग सूर्यदेव की कृपा पाने के लिए कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करते हैं।
फलों से सजे बाजार
दीपावली के बाद छठ पूजा के लिए बाजार सज गए हैं और एक बार फिर बाजारों में रौनक लौट आई है। गुरुवार से ही बाजार में दुर्लभ व बेमौसमी फलों की पर्याप्त उपलब्धता है। छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाला दउरा और सूपा सड़कों के किनारे बिक रहें हैं। लोग मोलभाव कर खरीदारी कर छठ पूजा की तैयारी को अंतिम रूप देना शुरू कर दिए हैं।
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