छठ महापर्व: अस्ताचलगामी सूर्य को दिया गया अर्घ्य, जिले के घाटों पर दिखा अद्भुत नजारा

महापर्व के अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर माँगा जाएगा सुख-समृद्धि का वरदान

संत कबीर नगर(राष्ट्र की परम्परा)। ‘कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकल जाए। बलमा, बनल छै कहरिया, बहंगी घाट पहुंचाए…।’ के साथ ‘पहिले पहिल हम कईनी, छठी मइया व्रत तोहार। करिहा क्षमा छठी मइया भूल-चूक गलती हमार…।’ वैसे तो दीपावली के बाद से ही छठ के गाने बजने शुरू हो जाते हैं, लेकिन छठ महापर्व शुरू होते ही समूचा वातावरण छठ के गीतों से गुंजायमान हो रहा है। रूनकी-झुनकी बेटी मांगिला-पढ़ल पंडितवा… सुगउ के मरब धेनुष से सुगा गिरिहें मुरछाय… और बाट जे जोहे ला बटोहिया दौरा केकरा के जाय… जैसे छठ पर्व के गीतों से माहौल भक्तिमय बना हुआ है।
सोमवार को छठ पूजा महापर्व के तीसरे दिन अस्ताचल गामी सूरज देव को अर्घ्य देने के लिए महिलाएं टोकरी में पूजन सामग्री लेकर तालाब, नदियों के किनारे घाटों पहुंची। तो कुछ व्रतियों ने घर में ही व्यवस्था कीl जिला मुख्यालय के पक्का पोखरा सहित अन्य सरोवर में पूजा करने के लिए सैकड़ों की तादाद में व्रती महिलाएं पहुंची। कई जगहों पर घर में ही अर्घ्य के लिए गड्ढा खोदकर घाट बनाया गया है। वहीं नगर पंचायत मगहर में आमी नदी के तट पर व्रतियों ने सांध्य अर्घ्य अर्पित कियाl जिला प्रशासन द्वारा भी छठ घाटों पर सुरक्षा और व्रतियों की सुविधा के लिए पर्याप्त व्यवस्था की गई है।
भगवान भास्कर की उपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ के दूसरे दिन रविवार को खरना संपन्न हो गया। व्रतियों ने स्नान के बाद संध्या काल में गुड़ और चावल से खीर बनाकर तथा घी लगी रोटी का भोग छठी माता को लगाया। खीर व रोटी को प्रसाद के तौर पर लोगों के बीच बांटा गया। सोमवार को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया गया और मंगलवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के बाद व्रत का पारण करेंगे। छठ गीतों से पूरा वातावरण गूंज रहा है। हर घर से छठ गीत के बोल सुनाई दे रहे हैं। पहले डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्यास्त के बाद लोग अपने-अपने घर वापस आ जाते हैं। रात भर जागरण किया जाता है।
अध्यापिका श्याम नन्दिनी मिश्रा बताती हैं कि महापर्व छठ शुद्धि और आस्था की मिशाल है। यह पर्यावरण के संरक्षण का संदेश देता है। लोगों को समानता और सद्भाव का मार्ग दिखाता है। अमीर-गरीब सभी माथे पर पूजन सामग्री की टोकरी लेकर एक साथ घाट पहुंचते हैं। यह पर्व प्रकृति से प्रेम को दर्शाता है। सूर्य और जल की महत्ता का प्रतीक यह पर्व पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है।
श्रीमती मिश्रा आगे कहती हैं छठ महापर्व सृष्टि चक्र का प्रतीक भी है। इस पर्व में पहले डूबते सूर्य की पूजा होती है। फिर उगते सूर्य की। सूर्य ही हमारे जीवन का स्रोत है। चाहे अपनी रोशनी से हमें जीवन देना हो या हमें भोजन देने वाले पौधों को भोजन देना, सूर्य का संपूर्ण जगत आभारी है।
उन्होंने ने छठी मइया भगवान सूर्य की बहन हैं। इन्हीं को खुश करने के लिए महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए इन्हीं को साक्षी मानकर भगवान सूर्य की आराधना करते हुए नदी तालाब के किनारे छठ पूजा की जाती है। प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करने वाले विष्णु भगवान द्वारा रची माया हैं। बालक के जन्म के छठे दिन छठी मैया की पूजा-अर्चना की जाती है।

rkpNavneet Mishra

Recent Posts

🕊️ देवरिया ने खोया एक सच्चा जननायक, क्षेत्र में शोक की लहर

देवरिया (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। देवरिया जिले के गौरी बाजार क्षेत्र के ग्राम सभा बखरा…

2 hours ago

“ग्रहों की चाल बदलेगी भाग्य की दिशा—जानिए आज कौन होगा भाग्यशाली और किसे रखनी होगी सावधानी!”

🌟 आज का राशिफल 28 अक्टूबर 2025पंडित सत्य प्रकाश पाण्डेय द्वारा प्रस्तुत वैदिक ज्योतिष शास्त्र…

2 hours ago

आस्था और श्रद्धा के सागर में डूबा गोरखपुर

छठ महापर्व पर उमड़ा जनसैलाब, सुरक्षा और स्वच्छता व्यवस्था में जुटा पूरा प्रशासनिक अमला गोरखपुर(राष्ट्र…

2 hours ago

छठ पूजा में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब, प्रशासन रहा मुस्तैद

बरहज/देवरिया (राष्ट्र की परम्परा)। संध्या में सरयू नदी के पावन तट पर आस्था और श्रद्धा…

3 hours ago

ढलते सूर्य देव को अर्ध्य अर्पित कर महिलाओं ने की आराधना

बहराइच (राष्ट्र की परम्परा) । नवाबगंज क्षेत्र में पूर्वांचल का महापर्व छठ पूजा के तीसरे…

3 hours ago