कोई नाराज़ होता है होने दो,
वह भारत के मेहमान नहीं हैं,
सारे संसार से वह लड़ते हैं,
इनके कोई सिद्धांत नहीं हैं।
राम कृष्ण की जन्मभूमि है,
इसका मान तो करना होगा;
यह भारत माता सबकी माँ है,
किसी एक का सामान नहीं है।
घर के भेदी सैकड़ों बने हैं,
और पैसों में बिके हुये हैं,
उनका कोई धर्म नहीं है,
उनका कोई ईमान नहीं है।
पुरखों ने इसको सींचा है,
अपने अपने रुधिर कणों से,
पर बांटा बहुत अंग्रेजों ने था,
पर अब भारत ख़ैरात नहीं है।
लूटा बहुत फिरंगियों ने था,
व बाबर उसकी संतानों ने,
देश हमारा यह सनातनी है,
आतताइयों की सराय नहीं है।
यकीनन वह इस राष्ट्र के
किरायेदार मालूम पड़ते हैं,
बेमुरव्वत हो कर जलाते हैं,
उनका अपना राष्ट्र नहीं है।
सबका सहयोग शामिल था,
आदित्य भारत की आज़ादी में,
पर वो ले चुके हैं पाकिस्तान;
अब उनका हिंदुस्तान नहीं है।
डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’
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