बिहार के शिक्षकों के तबादले की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव, म्युच्युअल ट्रांसफर अब बंद - राष्ट्र की परम्परा
August 18, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

बिहार के शिक्षकों के तबादले की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव, म्युच्युअल ट्रांसफर अब बंद

पटना (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) लंबे समय से लंबित शिक्षकों के तबादले की प्रक्रिया आखिरकार इसी माह से शुरू होने जा रही है। शिक्षा विभाग ने घोषणा की है कि इस बार तबादले जिला स्तर पर “स्थापना समिति” के माध्यम से किए जाएंगे। विभाग का कहना है कि अगले एक हफ्ते में विस्तृत गाइडलाइन जारी कर दी जाएगी।

म्युच्युअल ट्रांसफर पर रोक अब तक शिक्षक आपसी सहमति से म्युच्युअल ट्रांसफर कर पाते थे, लेकिन नई व्यवस्था में यह सुविधा पूरी तरह बंद कर दी गई है। शिक्षा विभाग का तर्क है कि म्युच्युअल ट्रांसफर में कई बार गड़बड़ियों और असमानता की शिकायतें मिलती थीं। साथ ही, यह प्रक्रिया कई बार “लॉबी” और व्यक्तिगत संपर्कों पर आधारित रहती थी। अब पूरी जिम्मेदारी स्थापना समिति के हाथों में होगी।

डीएम की अध्यक्षता में समिति हर ज़िले में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में आठ सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। यह समिति तय करेगी कि किस शिक्षक का तबादला किस विद्यालय में किया जाएगा। शिक्षकों को पुनः आवेदन करने का अवसर मिलेगा।अंतरजिला ट्रांसफर चाहने वाले शिक्षकों को तीन जिलों का विकल्प देना होगा, जिनमें से किसी एक जिले में उनका तबादला सुनिश्चित किया जाएगा।

एक लाख से ज्यादा शिक्षक इंतजार में विभाग के अनुसार, फिलहाल बिहार में एक लाख से ज्यादा शिक्षक तबादले की राह देख रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या ऐसे शिक्षकों की है जो पारिवारिक या पेशागत कारणों से अपने वर्तमान जिले से बाहर जाना चाहते हैं। अब तक म्युच्युअल ट्रांसफर उनके लिए सबसे आसान विकल्प रहा है।

शिक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 23,578 शिक्षक म्युच्युअल ट्रांसफर का लाभ उठा चुके हैं। यह प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी हुई थी और कई शिक्षकों के लिए बेहद लाभकारी साबित हुई थी। समान कोटि के शिक्षक आपस में स्थान बदलकर पारिवारिक बोझ हल्का कर पाते थे।

पारदर्शिता बनाम आशंकाएं सरकार का दावा है कि समिति आधारित ट्रांसफर से पारदर्शिता आएगी और तबादले “योग्यता” या “जरूरत” के आधार पर होंगे। लेकिन शिक्षकों के बीच यह आशंका भी है कि कहीं नई व्यवस्था पहले से ज्यादा जटिल और राजनीतिक दबावों से प्रभावित न हो जाए।अब देखना यह होगा कि स्थापना समिति की नई व्यवस्था शिक्षकों के लिए राहत बनती है या उनके सामने नई चुनौतियां खड़ी करती है।