भारतेंदु हरिश्चंद्र : साहित्य और पत्रकारिता के पथप्रदर्शक

  • नवनीत मिश्र

भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850–1885) आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक और हिंदी पत्रकारिता के अग्रदूत माने जाते हैं। अल्पायु में उन्होंने हिंदी को केवल साहित्यिक अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, बल्कि सामाजिक जागरण और राष्ट्रीय चेतना का औजार बना दिया।
उनके नाटक भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी और सत्य हरिश्चंद्र आज भी सामाजिक व राजनीतिक विडंबनाओं पर करारा व्यंग्य करते हैं। कवि और निबंधकार के रूप में उनका लेखन समाज को आत्मगौरव और आत्मचिंतन की ओर ले गया। उनकी प्रसिद्ध उक्ति “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।” ने हिंदी समाज को अपनी भाषा के महत्व का बोध कराया।
भारतेंदु ने पत्रकारिता को परिवर्तन का सशक्त मंच बनाया। कवि वचन सुधा, हरिश्चंद्र मैगज़ीन और हरिश्चंद्र चंद्रिका जैसी पत्रिकाओं से उन्होंने अंग्रेजी शासन की नीतियों पर प्रहार किया और दहेज, बाल विवाह, अंधविश्वास जैसी कुरीतियों के खिलाफ बेबाक लिखा। उनकी पत्रकारिता राष्ट्रभक्ति, सामाजिक सुधार और भाषा-विकास पर आधारित थी, और आज भी पत्रकारों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है।
डिजिटल युग की पत्रकारिता के सामने टीआरपी की दौड़, व्यावसायिक दबाव और फेक न्यूज़ जैसी चुनौतियाँ हैं। ऐसे समय में भारतेंदु का आदर्श हमें याद दिलाता है कि पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सत्ता की वकालत नहीं, बल्कि जनता की आवाज़ उठाना और समाज को सही दिशा देना है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन और कृतित्व यह सिखाता है कि साहित्य और पत्रकारिता तभी सार्थक हैं, जब वे समाज और राष्ट्र की उन्नति का माध्यम बनें। उनकी जयंती पर यही संकल्प लेना सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी।
“सदा सत्य बोलो, सदा सत्य लिखो, सदा सत्य का पालन करो।”- भारतेंदु हरिश्चंद्र

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