भगत सिंह की जयंती? आधुनिकता, राजनीति और सोशल मीडिया के जाल में खोता इतिहास?

(राजकुमार मणि)

आज़ादी का संघर्ष सिर्फ तारीख़ों और घटनाओं का संग्रह नहीं है, बल्कि उन वीर आत्माओं की शौर्य गाथाओं से लिखा गया है जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। इन वीरों में सबसे चमकता नाम है शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह।
लेकिन हर साल हमारी अंतरात्मा को झकझोरने वाला सवाल यह है – हम क्यों भूल जाते हैं भगत सिंह की जयंती?
आज, सोशल मीडिया पर हर किसी के जन्मदिन की फोटो और बधाई ट्रेंड करती है, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की स्मृति कहीं पीछे छूट जाती है। क्या हम सचमुच अपने इतिहास को भूल रहे हैं, या आधुनिक जीवन की तेज़ रफ्तार और राजनीतिक स्वार्थ हमें उनसे दूर ले जा रही है?
भगत सिंह: बचपन से क्रांति तक
28 सितंबर 1907 को पंजाब के बंगा गाँव में जन्मे भगत सिंह, मात्र 12 वर्ष की आयु में जलियांवाला बाग हत्याकांड से गहरे प्रभावित हुए। यही घटना उनके हृदय में क्रांति की ज्वाला भड़क गई।
उनका मानना था कि अंग्रेज़ों की हुकूमत केवल हथियार, संगठन और बलिदान से ही परास्त हो सकती है। इसलिए उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) से जुड़कर संगठित क्रांति की नींव रखी।
भुला क्यों दिया गया भगत सिंह को?

आधुनिकता और व्यावसायिक जीवन का दबदबा
युवा पीढ़ी आज मनोरंजन, सोशल मीडिया और व्यस्त जीवन में उलझी है। ऐसे में राष्ट्रनायकों की स्मृति केवल इतिहास की किताबों तक सीमित रह गई है।

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  1. राजनीतिक स्वार्थ और उपेक्षा
    कई बार राजनीतिक दल अपने हित और विचारधारा के अनुसार इतिहास का प्रचार करते हैं। भगत सिंह का समाजवादी और क्रांतिकारी दृष्टिकोण हर किसी के लिए सहज नहीं था, इसलिए उनकी जयंती पर औपचारिकता से अधिक चर्चा नहीं होती।
  2. मीडिया की सीमित भूमिका
    समाचार चैनल और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी जाती है, लेकिन लगातार युवा पीढ़ी तक उनके विचार और साहस की पहुँच नहीं होती।
  3. युवा पीढ़ी की अनभिज्ञता
    इंटरनेट और सोशल मीडिया में मनोरंजन और ट्रेंड्स का दबदबा ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को पीछे धकेल देता है।
    भगत सिंह के विचार आज भी प्रासंगिक क्यों हैं?
    भगत सिंह का संदेश केवल अंग्रेज़ों से लड़ने तक सीमित नहीं था। उनका मानना था:

“किसी भी समाज को यदि आगे बढ़ना है, तो उसे अंधविश्वास और गुलामी की मानसिकता से मुक्त होना पड़ेगा।”
आज, जब हम भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और सामाजिक असमानता जैसी चुनौतियों से जूझ रहे हैं, उनके विचार और भी अधिक प्रासंगिक हो उठते हैं।
शहादत जिसने इतिहास बदल दिया
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली, दिल्ली में बम फेंका। उनका उद्देश्य किसी की जान लेना नहीं था, बल्कि ब्रिटिश शासन को जगाना था।
23 मार्च 1931 को, राजगुरु और सुखदेव के साथ, भगत सिंह को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई, जब उनकी उम्र केवल 23 वर्ष थी। उनकी शहादत ने लाखों भारतीयों के दिलों में क्रांति की आग भड़काई और स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।
सोशल मीडिया और राजनीतिक लाभ में फंसी जयंती
आज भगत सिंह की जयंती भी राजनीतिक और डिजिटल स्वार्थों के जाल में फंसी है। अनेक बार जातिगत राजनीति और राजनीतिक प्रचार के लिए स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों को “अपने हित के हिसाब से” मोड़ दिया जाता है। ऐसे में युवाओं तक उनका वास्तविक संदेश और बलिदान पहुँच पाना कठिन हो जाता है।
हम क्या कर सकते हैं?

  1. शैक्षणिक पाठ्यक्रम में विस्तार
    बच्चों को केवल नाम और तारीख़ नहीं, बल्कि भगत सिंह के विचार, सिद्धांत और क्रांतिकारी दृष्टिकोण पढ़ाना चाहिए।
  2. डिजिटल जागरूकता
    सोशल मीडिया पर उनकी जयंती को ट्रेंड में लाना, वीडियो, पोडकास्ट और आर्टिकल के माध्यम से युवाओं तक पहुँचाना।
  3. सांस्कृतिक और सामुदायिक आयोजन
    स्कूल, कॉलेज और समाज में नाटक, वाद-विवाद और सांस्कृतिक कार्यक्रम कर उनकी गाथा जीवित रखना।
  4. व्यक्तिगत संकल्प
    हर भारतीय अपने जीवन में कम से कम एक कार्य ऐसा अपनाए जो देश और समाज के हित में हो, यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
    भगत सिंह सिर्फ एक क्रांतिकारी नहीं, बल्कि युवा चेतना और समाज की मानसिकता बदलने वाले दार्शनिक थे। उनकी जयंती हमें याद दिलाती है कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक आज़ादी नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्वतंत्रता भी है।
    अगर हम हर साल केवल औपचारिकता निभाते रहेंगे, तो आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें केवल इतिहास की किताबों में ढूँढेंगी। इसलिए ज़रूरी है कि हम भगत सिंह की जयंती को राष्ट्रीय चेतना और युवा जागरण का पर्व बनाएं।
Editor CP pandey

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