November 22, 2024

राष्ट्र की परम्परा

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जीवन में खुश रहना सर्वाधिक आवश्यक है: प्रो. पूनम टंडन

कभी-कभी ना कहना आपके हित में होता है क्यूंकि लोग आपकी अनुमति से ही आपका फायदा उठाते है: प्रो. आराधना शुक्ला

ख़ुशी को प्राप्त करने हेतु मन की डोरी को थामना आवश्यक, इस हेतु मैडिटेशन महत्वपूर्ण है: प्रो. मधुरिमा प्रधान

गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संवाद भवन में सोमवार को मनोविज्ञान विभाग द्वारा अधिष्ठाता छात्र कल्याण के संयुक्त तत्वाधान “छात्र की खुशी और कल्याण की वृद्धि” विषयक कार्यशाला का आयोजन किया गया। मनोविज्ञान विभाग के विजन प्लान के स्टूडेंट्स वेल बीइंग इनिशिएटिव के अंतर्गत यह पहला कार्यक्रम आयोजित किया गया है।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वल्लन एवं कुलगीत के साथ हुआ। तत्पश्चात अधिष्ठाता छात्र कल्याण, प्रोफेसर अनुभूति दूबे ने मुख्य अतिथियों एवं सभी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का औपचारिक आरम्भ आदरणीय प्रोफेसर पूनम टंडन, कुलपति , दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के उद्बोधन द्वारा हुआ। अपने उद्बोधन में कुलपति ने यह कहा कि जीवन में खुश रहना सर्वाधिक आवश्यक है। अतः शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना भी हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। आज के समसामयिक समाज में परामर्श को स्टिग्मा के रूप में समझना गलत है। इसी कड़ी में प्रो. टंडन ने मनोविज्ञान विभाग की प्रशंसा करते हुए छात्रों के हित में स्वस्ति काउन्सलिंग केंद्र एवं हैप्पीनेस लैब के तर्ज पर स्नेह लैब के स्थापना का जिक्र किया।
तत्पश्चात कार्यक्रम का विषय प्रवर्तन करते हुए , प्रो. धनञ्जय कुमार , विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग ने कहा कि जहाँ हमारा विश्वविद्यालय प्रत्येक क्षेत्र में छात्र हित की ओर कार्य कर रहा है। वहीँ मानसिक स्वास्थ्य के प्रति विद्यार्थियों को जागरूक करने हेतु मनोविज्ञान विभाग की यह पहल है जिसे “स्टूडेंट वेल बीइंग इनिशिएटिव” का नाम दिया गया है। इसके अंतर्गत छात्रों में मानसिक समस्याओं की पहचान कर उनके निवारण तथा विद्यार्थियों के वेल बीइंग को बढ़ावा देना है।
कार्यक्रम में दोनों मुख्य वक्ता का परिचय डॉ. प्रियंका गौतम द्वारा कराया गया।
मुख्य वक्ता प्रोफेसर आराधना शुक्ला, एसएसजे विश्वविद्यालय, अल्मोरा ने तनाव प्रबंधन पर अपने विचार प्रस्तुत किए। तनाव हमेशा हानिकारक नहीं होता, अपितु माध्यम स्तर का तनाव जीविका हेतु आवश्यक है। तनाव प्रबंधन के तकनीकों की बात करते हुए प्रो. शुक्ला ने स्व को महत्व देने पर जोर डाला. प्रोफेसर शुक्ला ने यह बताया कि कभी-कभी ‘ ना ‘ कहना आपके हित में होता है। क्यूंकि लोग आपकी अनुमति से ही आपका फायदा उठाते है।
प्रो. मधुरिमा प्रधान, लखनऊ विश्वविद्यालय, ने अपने वक्तत्व में शुरुआत में तनाव प्रबंधन में खुद को बुलंद रखने के बात कही।
उन्होंने कहा कि मन ही खुशी का आधार है, एवं ख़ुशी में 40 प्रतिशत हिस्सा हमारे अपने निर्णयों का है। ख़ुशी को प्राप्त करने हेतु मन की डोरी को थामने की बात रखी, जहाँ उन्होंने मैडिटेशन के महत्व को इंगित किया। उनके अनुसार मैडिटेशन एक स्टेट या स्थिति है जिसे प्राप्त करने हेतु हमे उसके तत्वों पर ध्यान देना होगा, ठीक उसी प्रकार से जैसे एक फूल की प्राप्ति हेतु हमें पौधों को लगाना एवं सींचना होता है। मैडिटेशन की बात करते हुए उन्होंने अपने उद्बोधन में “ॐ” को एक अनाहत शब्द बताते हुए आ, ऊ एवं म, अथार्थ ब्रह्म, विष्णु एवं महेश के समागम वाले “ॐ” शब्द के आध्यात्मिक महत्त्व को बताया . इसके साथ ही सभी को “ॐ उच्चारण” कराते हुए अपने उद्बोधन को समाप्त किया।
मुख्य वक्ता के उद्बोधन के पश्चात मनोविज्ञान विभाग के डॉ. गिरिजेश कुमार यादव, डॉ. राम कीर्ति सिंह एवं डॉ. अमित त्रिपाठी के नेतृत्व में छात्रों का व्यक्तित्व मापन कर उन्हें “मनोकुंडली” प्रदान किया गया।
कार्यक्रम में मंच संचालन डॉ. गरिमा सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रश्मि रानी द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में अधिष्ठाता, कला संकाय प्रो. राजवंत राव , प्रो. उमेश नाथ त्रिपाठी, प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी, प्रो. मनोज तिवारी, प्रो. सुधीर श्रीवास्तव, डॉ. अभिषेक शुक्ला, डॉ. वंदना, डॉ. मनीष पाण्डेय , डॉ. आशीष शुक्ला, डॉ. विस्मिता पालीवाल, डॉ. आमोद कुमार राय एवं अन्य शिक्षकगण व विद्यार्थी उपस्थित रहे।