न्यायालय, पुलिस और अस्पताल
लोकतंत्र में जनता के सेवक होते हैं,
यह तथ्य मगर दीगर है कि यही सब
धन बल से अधिक प्रभावित होते हैं।
न्यायपालिका, विधायिका और
भारत की कार्यपालिका तीनों ही,
लोकतंत्र के प्रमुख स्तंभ कहे जाते हैं
आज यह निष्पक्ष नहीं माने जाते हैं।
इसके आगे जाकर भी देखो तो,
चौथा स्तंभ लोकतंत्र में मीडिया है,
वह भी पिछले बहुत समय से बस,
राजनीति प्रेरित और प्रभावित है।
लोकतंत्र का जैसा मखौल आज
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में है,
उसकी नहीं मिशाल कहीं मिलती है,
केवल सारे भारत में सर्वत्र व्याप्त है।
किसको समझें किसको कोई रोकेगा,
धन बल, जन बल और बाहु बल हैं,
आदित्य इनका बहुत बोलबाला है,
स्वार्थलिप्त सब शासक, शासित हैं।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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