Categories: कविता

नाते सब कमजोर॥

स्वार्थ भरी इस भीड़ में, खोए अपने लोग।
चाहत की इस दौड़ में, छूट गए सब योग॥

सत्य हुआ अब मौन सा, झूठ मचाए शोर।
धन के आगे बिक रहे, नाते सब कमजोर॥

कलियाँ रोती बाग में, पात हुए बेचैन।
सुख की छाया ढूँढते, पंछी अब दिन रैन॥

हरे पेड़ तो कट चले, सूख गए सब खेत।
जल बिन पंछी रो रहे, दिखे रेत ही रेत॥

जल को तरसे धान भी, सूख गए खलिहान।
बादल बिन बरसे गए, रोया देख किसान॥

मन में सच्ची प्रीत हो, वाणी रहे मिठास।
बातें चाहे कम कहो, बन जाए इतिहास॥

झूठ कहे जो जीतता, सच्चा रहे उदास।
कलयुग के इस फेर में, पंजा हुआ पचास॥

-डॉ. सत्यवान सौरभ

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