आज एड्स हमारे समाज के लिए चिन्ता का विषय बन गया है। जो राष्ट्र ही नही अपितु सम्पूर्ण विश्व में यह महामारी की तरह फैल रहा है। विषाणु द्वारा होने वाले चेचक, मीठ ज्वर, इन्फ्लुएन्जा, खसरा, कैन्सर, आदि की तरह एड्स भी विषाणु (वायरस) से उत्पन्न होने वाला एक जान लेवा रोग है। एड्स अर्थात उपार्जित प्रतिरक्षा अपूर्णता संलक्षण (AIDS= Acquiteced Immune Deficieng Syndrom) है तथा इसके वायरस का नाम एच.आई.वी. (HIV = Human Immunodeficiency Virus) मानव प्रतिरक्षा अपूर्णता वायरस है। यह वायरस हमारे शरीर के प्रतिरक्षण तन्त्र (Immune System) को नष्ट कर देता है। जिससे कवकों, जीवाणुओं, प्रोटोजोआ द्वारा उत्पन्न होने वाले संक्रामक रोगो से बचाव की क्षमता समाप्त हो जाती है। जिससे मानव नरभक्षी एड्स के शिकार हो जाते हैं ।
एड्स रोग का पता सन् 1981 तथा एच. आई. वी. वाइरस का पता 1983 में चला। अमेरिका में एड्स से ग्रसित पहला रोगी पाया गया था। तब हमने यह कह कर इसकी उपेक्षा कर दी थी कि यह वहाँ के यौनाचारी और विलासी समाज की देन है। हमारा समाज पवित्र और नैतिक है। किन्तु हमोर गर्व को चकनाचूर होने में देर नही लगी और 1986 में चेन्नई में पहला एचआईवी पोजिटिव व्यक्ति मिला। धीरे-धीरे यह रोग कुछ ही वर्षों में सम्पूर्ण विश्व में महामारी की तरह फैल गया।
नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 में देश में 21.40 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित थे। इस दौरान करीब 69 हजार लोगों की मौत इसके कारण हुई। एड्स का वायरस बहुत ही मन्द गति से मानव शरीर मे पनपता रहेता है। और संक्रमित व्यक्ति वर्षो तक अपने अन्दर पल रहे इस नरभक्षी से अनभिज्ञ रहता है और ऊपर से चुस्त-दुरुस्त दिखाई दे सकता है।
एच.आई वी.-एड्स पर हुए अनेक शोधों से ज्ञात हुआ है कि यह संक्रमण असुरक्षित यौनाचार से 70-80 प्रतिशत, ड्रग्स अर्थात इंजेक्शन से नशीली दवाओं को लेने से 5-10 प्रतिशत, संक्रमित माँ से बच्चे को 8-10 प्रतिशत, रक्त के आदान-प्रदान में बरती जाने वाली लापरवाहियों के कारण 3-5 प्रतिशत, एवं संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहने से 0.01 प्रतिशत से कम फैलता है। नाइयों के अस्तुरों (रेजर) से भी एच.आई.वी.-एड्स के संक्रमण की संभावना रहती है। सच.आई.वी.-एड्स प्राय: रक्त से फैलने वाला रोग है न कि संक्रमित व्यक्ति से हाथ मिलाने, उसे छुने या गले लगाने से, तालाबों, नदियों में नहाने, सार्वजनिक स्थानों (होटल, रेस्ट्रा या ढाबा मेंर बैठ कर खाना-खाने से, संक्रमित व्यक्ति के खाँसने, छींकने, थूकने, विश्रामगृहों से भी ये वायरस अन्य व्यक्तियों तक नही पहुँचते। एच.आई.वी. ग्रसित व्यक्ति के पास बैठने से भी कोई हानि नही होता है।
संक्रमित व्यक्ति के अन्दर 8-10 वर्ष तक कोई विशेष लक्षण नही दिखाई देता है। पोषिता में संक्रमण के पश्चात शीघ्र ही थकावट, ज्वर, अतिसार, खाँसी, कमजोरी, भूख न लगना आदि लक्षण विकसित होने लगते है। गुप्तांगों पर चकते दिखाई देते हैं। कुछ रोगियों के जांघों आदि पर गाँठे बन जाती है। पूर्णतः प्रभावित व्यक्ति उच्च ज्वर, अत्यधिक थकान, पसीना होना, सूखी खाँसी, साँस फूलने आदि से ग्रसित हो जाता है। साथ ही साथ वजन काफी घट जाता है। ग्रन्थियों में सूजन आ जाती है तथा व्याकुलता बढ़ जाती है।
हमें समाज में व्याप्त एच.आई.वी.-एड्स की अनभिज्ञता को दूर करने के लिए अपना यथा सम्भव प्रयास करना चाहिए ऐसा करके ही आम लोगों को इस बीमारी से बचाव के बारे में ज्यादा सावधान किया जा सकता है। इसके अलावा उन्हें अपने व्यवहार बदलाकर स्वस्थ एवं संयमित जीवन शैली अपनाने की प्रेरणा दी जा सकती है। अतएव हमारा कर्त्तव्य है कि अपने राष्ट्र को ही नही अपितु सम्पूर्ण जगत को एड्स से मुक्त बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर जनकल्याण के उपयोगी सिद्ध होवें। विश्व एड्स दिवस की सार्थकता की भी इसी में निहित है।
-नवनीत मिश्र
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