बहराइच (राष्ट्र की परम्परा)l बढ़ती ठंड और आसमान में छाए बादलों की वजह से चने की फसल में कीट रोग व्याधियाँ जैसे कि कटुआ कीट, सेमीलूपर, फली बेधक, जड़ सड़न, उकठा, पत्ती धब्बा रोग आदि लगने की पूरी संभावना बनी हुई है। केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. के.एम. सिंह ने बताया की चने के खेत के चारो ओर गेंदे के फूल को ट्रैप क्रॉप के रूप में प्रयोग करना चाहिए। चने के साथ अलसी, सरसों, धनिया की सहफसली खेती करने से फली बेधक कीट से होने वाली क्षति कम हो जाती है। उन्होंने बताया कि जिस खेत में प्रायः उकठा लगता हो यथासंभव उस खेत में 3-4 वर्ष तक चने की फसल नहीं लेनी चाहिए और अगेती जड़ सड़न से बचाव हेतु नवम्बर के द्वितीय सप्ताह में बुवाई करनी चाहिए। इसके अलावा जगह जगह सूखी घास के छोटे- छोटे ढेर को रख देने से दिन में कटुआ कीट की सूड़ियाँ छिप जाती हैं जिसे प्रातःकाल नष्ट कर देना चाहिए। केंद्र की पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ हर्षिता ने बताया कि चने में यदि उकठा रोग लग गया तो यह पूरी फसल को बर्बाद कर देता है। यह रोग लगते ही चने के पौधे अचानक से सूखने लगते हैं और इसकी मुख्य पहचान यह है कि पौधों की जड़ों के पास चीरा लगाने पर उनमें काली संरचना दिखाई देती है। इस रोग की सबसे दुविधाजनक बात यह है कि किसान कुछ समझ पाए इससे पहले ही फसल को काफी नुकसान हो चुका होता है। अतः किसानों को इस रोग की शुरुआत से पहले ही फसलों को इससे बचाने के उपाय कर लेने चाहिए। उन्होंने बताया कि यह एक फफूंद जनित रोग है जो फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम सिसिराई नामक कवक द्वारा फैलता है। बुआई के समय इसके नियंत्रण के लिए ट्राइकोड्रर्मा पाउडर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए। साथ ही चार किलोग्राम ट्राइकोड्रर्मा को 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद मे मिलाकर बुवाई से पहले प्रति हेक्टेयर की दर से खेत मे मिला देना चाहिए। खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्लयू.पी. 0.2 प्रतिशत घोल का पौधों के जड़ क्षेत्र मे छिड़काव करें। फूल-फलियाॅ बनते समय फली बेधक के नियंत्रण हेतु 5 गंधपास प्रति हेक्टयर की दर से खेत में लगाना चाहिए। साथ ही 50 से 60 बर्ड पर्चर प्रति हेक्टेयर की दर से लगाना चाहिए जिस पर चिड़िया बैठकर सूडीयों को खाकर कीट का प्राकृतिक नियंत्रण कर सकें।
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