July 14, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

आदित्य की दो कविताएं

1- पैसा, वक्त और संस्कार

पैसा और वक्त दोनों ही मूल्यवान हैं,
जीवन में दोनों की बड़ी अहमियत है,
दोनों में फ़र्क़ बस इतना होता है कि
हमारे पास पैसा कितना है हमें पता है।

परंतु हमारे पास वक्त कितना बचा है
शायद किसी को पता नहीं होता है,
इसलिए पैसे का उपभोग तो खूब करो,
लेकिन वक्त का हर क्षण सदुपयोग करो।

जीवन में ख़तरे लेना ही पड़ता है,
फिर चाहे पैसा हो या चाहे वक्त हो,
दोनो में अगर जीत होती है तो हमें
आगे आगे बढ़ने का अवसर मिलता है।

अगर दोनों व्यर्थ हो जाते हैं तो आगे
बढ़कर बाधा हटाने का मौक़ा मिलता है,
इसीलिए वक्त रहते पैसा कमाना है
और दोनों का हर सदुपयोग करना है।

पैसा और वक्त दोनों का ही हमारे
संस्कारों से गहरा नाता होता है,
दोनों ही सुसंस्कार देते भी हैं और
दोनों संस्कार विहीन भी कर देते हैं।

संस्कार परिवार समाज से अलग
नहीं जुड़कर रहने से ही मिलते हैं,
जैसे पत्थर तभी तक साबुत होते हैं
जब तक पर्वत से जुड़े हुये रहते हैं।

पत्ते तब तक हरे रहते हैं जब तक
वह पेड़ की डाली से लगे रहते हैं,
इंसान भी तभी तक सशक्त होते हैं
जब तक घर समाज से जुड़े रहते हैं।

पैसा, वक्त, संस्कार व परिवार
सभी समाज के लिए ही होते हैं,
आदित्य इनका जितना सदुपयोग
किया जाय उतने उपयोगी होते हैं।

2- आत्म विश्वास व आचरण

खुद को कमज़ोर समझना मनुष्य
की सबसे बड़ी कमजोरी होती है,
जब हम खुद पर विश्वास नहीं करते
तो ईश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं।

ईश्वर पर पूर्ण आस्था रख कर हम
सभी एक समय में एक ही काम करें,
ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा
उसमे डाल दें,बाकी सब भूल जायें।

कहते हैं जितना ज़्यादा संघर्ष होगा,
जीत व जश्न वैसा ही शानदार होगा
महानता तभी होती है जब सामान्य
व्यक्ति संघर्ष कर सफल बनता है।

अक्सर देखा जाता है कि लोग
धर्म के लिये तो लड़ते रहते हैं,
परंतु वही लोग धर्म के लिए ही
क़र्म करने में पीछे भी रहते हैं।

यह कटु सत्य है, लोग जिस धर्म के
लिये मरने व मारने पर उतारू रहते हैं,
परंतु उसी धर्म आचरण पर चलने के
लिये कोई प्रयत्न तक नहीं करते हैं।

एक छोटा सा उद्धरण है कि आज
स्मार्ट फ़ोन ने घड़ी, एलार्म, कैमरा,
कैलेंडर आदि को पीछे छोड़ दिया है,
और हर समय उसी से चिपके रहते हैं।

अब तो ऐसा लगता है घर का हर
सदस्य एक दूसरे को भूल रहा है,
स्मार्ट फ़ोन में व्यस्त रहकर घर में
खुद को भी खुद ही भूल रहा है।

अपना आचरण व विश्वास गँवाना
बड़ा आसान काम दुनिया में होता है,
आदित्य आचरण व विश्वास पाना व
पाकर क़ायम रखना अत्यंत कठिन है।

  • कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’