1- वैदिक धर्म में सात फेरे, सात वचन
यह एक विचारणीय प्रश्न है कि
भारतीय समाज में एक पृथा है,
दूल्हा दुलहन विवाह के समय अग्नि
के पूरे सात फेरे साथ साथ लेते हैं।
चार फेरे में दूल्हन आगे चलती है,
शेष तीन फेरों में वर आगे चलता है,
हिंदू संस्कृति में सात अंक का महत्व
अति पवित्र व विशिष्ट माना जाता है।
सात फेरों का सम्बंध सप्तऋषि,
सात समुंदर, सात द्वीप, सात चक्र
इंद्रधनुष के सात रंग इत्यादि से भी
वैदिक संस्कृति में माना जाता है।
सात ग्रह, सात तल, सप्तलोक, सप्त
रवि अश्व, सप्त रश्मि, सप्तधातु,
सप्तपुरी, सप्तपरिक्रमा, सप्त सरगम
आदि सभी सात के अंक से पूजे जाते हैं।
सात वचन दे एकदूजे को वर-वधू
जीवन में पति- पत्नी बन जाते हैं,
अग्नि के सात फेरे लेकर, अग्नि को
साक्षी मान एक दूजे के हो जाते हैं।
सातों वचन निभाने की मर्यादा से
वर-वधू पूरी तरह से बंध जाते हैं,
वचन निभाना तो वैदिक संस्कृति है
सप्त वचन इसलिए पवित्र माने जाते हैं।
आदित्य सप्तपदी के वचनों का हर
फेरा तीन सौ साठ डिग्री का होता है,
जो एक से नौ अंकों के मध्य केवल
सात के अंक से विभाजित नही होता है।
2- माता पिता कंजूस या मितव्ययी
बाजार में जाकर भी अपनी खुद की
आवश्यकता पूरी ना करने पाने वाला
व्यक्ति कंजूस नहीं कहा जाता है,
उसे मितव्ययी पिता कहा जाता है।
यह बिलकुल सत्य है कि माता पिता
को अपने से पहले अपने परिवार व
अपने बच्चों की आवश्यकतायें पूरी
करने का ध्यान रखना ही होता है।
बच्चों का भविष्य संवारने के लिए
अपना वर्तमान दांव पर लगा देता है,
ऐसी सोच रखने वाला व करने वाला
व्यक्ति एक मध्यवर्गीय पिता होता है।
बाजार से खाने की चीज़ नहीं लाने
वाला कंजूस नहीं मितव्ययी होता है,
परिवार का पेट नहीं काटता क्योंकि
उसी पैसे से वह सपरिवार खाता हैं।
वैसे भी आजकल बाजार की मिश्रित
मिलावटी चीजों को नही खाने वाला
ही सबसे अधिक समझदार होता है,
वो अच्छे स्वास्थ्य का हक़दार होता है।
यह भी सच है कि अगर पिता ऐसा
होता है तो माँ भी ऐसी ही होती है,
रसोईघर में पसीने से लथपथ हो
सबके खाने के बाद खुद खाती है।
जूठे वर्तन जहाँ होते, माँ वहाँ होती है,
आदित्य कभी कभी खाना कम न हो
जाय, इस डर से माँ स्वयं सबसे बाद
में बचा खुचा खाना ही खा पाती है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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