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प्रातः स्मरण उनका सदैव करता हूँ,
भवभीत सुरेश को ध्यान में रखता हूँ,
गंगाधर बृषभारूढ़ का जाप करता हूँ,
संसार रोग नाशकर्ता को भजता हूँ।
नमामीश शम्भो हे निर्वाणरूपं,
हरे विश्वव्यापी प्रभो वेदस्वरूपं,
निर्गुणी निर्विकल्पी अजन्मा निरीहं,
आकाशवासी शिवशंभो भजेहं।
निराकार ओंकार हे महान दानी,
गिरा ज्ञान इंद्रिय परातीत ज्ञानी,
भजे विश्व भोले महाकाल कालं,
गुणागार अपारं हे संसार सारम्।
तुषाराद्रि गंभीर हे गौरांग शाली,
प्रभा विराजती काम कोटि वाली,
बहे शीश से चारू गंगा की धारा,
लसद्भाल बालेन्दु हे नागेंद्र हारा।
हे कर्ण कुंडल हे त्रिनेत्र विशाला,
मुखे प्रसन्ना गले नीलकंठ व्याला,
बाघम्बर धारी है गले मुण्ड माला,
प्रिय शम्भु भोले भजो बैल वाला।
प्रचण्डी प्रखंडी प्रगल्भी परेषम,
त्रिशूल पाणि कोटि भानू प्रकाशं,
गुणातीत शंभो सुकल्याण कारी,
सदा सच्चिदानंद हे दाता पुरारी।
सर्व पापहारी, हे शिव प्रमोदक़ारी,
ख़ुशियों के दाता हे कामकामहारी,
नहीं जानता हूँ मैं, योग और पूजा,
भजूँ सर्वदा शिवशम्भू नहीं देव दूजा।
हरें व्याधियाँ सर्व जराजन्म पीड़ा,
महादेव शंभुभोले करें नित्य क्रीड़ा,
आदित्य शिवार्चन पाठ नित्य करिये,
भोलेनाथ शिव को भी प्रसन्न रखिये।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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