सिख परंपरा की अनोखी सेवा: क्यों खास है गुरुद्वारे में जूता संभालना

गुरुद्वारे की जूता सेवा का आध्यात्मिक महत्व: विनम्रता, करुणा और आत्मिक शुद्धि का अद्भुत संगम

दिल्ली (राष्ट्र की परम्परा धर्म डेस्क)गुरुद्वारे में की जाने वाली जूता सेवा सिख परंपरा की सबसे पवित्र और प्रेरणादायक सेवाओं में से एक मानी जाती है। यह केवल जूतों को रखना या व्यवस्थित करना भर नहीं, बल्कि विनम्रता, सेवा-भाव और आत्मिक जागृति का अत्यंत महत्वपूर्ण माध्यम है। इस सेवा के माध्यम से हर व्यक्ति अपने भीतर छिपे अहंकार, घमंड और नकारात्मक विचारों से मुक्त होकर शुद्ध मन के साथ गुरु के मार्ग पर चलता है।

गुरुद्वारे में आने वाले श्रद्धालुओं के जूतों को संभालना सिख धर्म में सीधी ईश्वर-सेवा माना गया है। यह विश्वास किया जाता है कि बिना किसी स्वार्थ के किए गए इस छोटे से कार्य से व्यक्ति के मन में करुणा, दया और सेवा-भावना विकसित होती है। जूता सेवा करते समय इंसान हर वर्ग, जाति, उम्र और परिस्थिति से जुड़े लोगों के संपर्क में आता है, जिससे उसके भीतर सबके प्रति समानता और प्रेम की भावना उत्पन्न होती है।

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इस सेवा का आध्यात्मिक पक्ष भी उतना ही गहरा है। जूतों को उठाना, साफ करना या व्यवस्थित करना व्यक्ति को यह एहसास कराता है कि हर कार्य, चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, गुरु की राह में एक अमूल्य योगदान है। इससे मन में विनम्रता बढ़ती है और अहंकार स्वत: कम हो जाता है। यही वजह है कि सिख मत में कहा गया है—
“सेवा करनी सर्वश्रेष्ठ भक्ति है।”

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जूता सेवा का एक बड़ा लाभ यह भी है कि यह मानसिक तनाव को कम करती है। शांत मन से की गई यह सेवा व्यक्ति को अंदरूनी सुकून, संतोष और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है। दैनिक जीवन की अनेक बाधाएँ, परेशानियाँ और चिंताएँ इस निस्वार्थ सेवा के दौरान दूर होती चली जाती हैं। माना जाता है कि नियमित रूप से सेवा करने से पिछले कर्मों का भार भी हल्का होता है और जीवन में गुरु कृपा का अनुभव होता है।

आज के समय में जब समाज तेजी से बदल रहा है, गुरुद्वारों में जूता सेवा लोगों को मानवता और विनम्रता का जीवंत पाठ सिखाती है। यह परंपरा सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों पर आधारित है। यही वजह है कि गुरुद्वारों में जूता सेवा को चरित्र निर्माण और आध्यात्मिक उन्नति का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

Editor CP pandey

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