सोमनाथ मिश्र की प्रस्तुति
भारत की व्यवस्था की सबसे बड़ी बुनियादी बीमारी यदि किसी एक शब्द में समझानी हो तो वह है—भ्रष्टाचार। आज यह केवल एक अपराध नहीं, बल्कि सामान्य व्यवहार की तरह समाज में फैल चुका है। दफ्तरों में फाइलें तभी आगे बढ़ती हैं जब “गति शुल्क” दिया जाए। योजनाएँ कागज पर चमकती हैं, लेकिन ज़मीन पर आधी-अधूरी दिखाई देती हैं। करोड़ों का बजट जारी होता है, मगर जनता को मिलता है सिर्फ बहानों का ढेर।
भ्रष्टाचार का अर्थ सिर्फ पैसों की चोरी नहीं—यह विश्वास की हत्या है, आम आदमी के सपनों को कुचलने वाली ताकत है। सबसे गंभीर बात यह है कि लोग इसे “सिस्टम का हिस्सा” मानकर स्वीकार करने लगे हैं। जब अनैतिकता सामान्य बन जाए, तो समझिए समाज की नींव हिलने लगी है।
सरकारी व्यवस्था में भ्रष्टाचार के 10 आसानी से समझ आने वाले उदाहरण
- फाइल आगे बढ़ाने के लिए रिश्वत – कई दफ्तरों में काम तभी होता है जब ‘चाय-पानी’ की मांग पूरी हो जाए।
- सरकारी योजनाओं में फर्जी लाभार्थी – गरीबों के लिए बनी योजनाओं में नकली नाम जोड़कर फंड की बंदरबांट।
- सड़क निर्माण में घटिया सामग्री – मोटा बजट आता है लेकिन सड़क 6 महीने में ही टूटने लगती है।
- स्कूलों में फर्जी उपस्थिति – शिक्षकों की उपस्थिति ऑनलाइन है, पर कई जगह कागजों में ही पूरी कर दी जाती है।
- अस्पतालों में दलाली – सरकारी अस्पताल में मुफ्त सुविधाएँ होते हुए भी एजेंट मरीजों को निजी अस्पताल भेज देते हैं।
- पंचायत स्तर पर कमीशनखोरी – मनरेगा, आवास या शौचालय योजनाओं में 10–20% कमीशन की खुली मांग।
- पुलिस वसूली – ट्रक चेकिंग, लाइसेंस, या छोटे विवादों में अनावश्यक “समझौता राशि” का चलन।
- रेवन्यू विभाग में फाइलें अटकाना – खसरा-खतौनी में नाम जोड़ने या सुधार के लिए महीनों तक दौड़ लगानी पड़ती है।
- नगरपालिका में ठेके का खेल – सफाई, स्ट्रीट लाइट, जलापूर्ति के काम कागज पर पूरा दिखा दिया जाता है।
- परीक्षाओं में नकल व पेपर लीक – शिक्षा जैसी पवित्र व्यवस्था पर भी घोटालों का साया, भविष्य अंधेरे में।
ये उदाहरण बताते हैं कि समस्या केवल पैसों की नहीं—सोच और सिस्टम दोनों की खराबी है।
क्या समाधान असंभव है? बिल्कुल नहीं। ये 4 कदम बदलाव की ताकत बन सकते हैं - डिजिटलाइजेशन और ई-गवर्नेंस
जहाँ भी प्रक्रियाएँ ऑनलाइन हुईं, वहाँ भ्रष्टाचार अपने-आप कम हुआ। ऑनलाइन फाइल ट्रैकिंग, डिजिटल पेमेंट, ई-टेंडरिंग… इनसे बिचौलियों की भूमिका घटती है। - पारदर्शिता बढ़ाना
हर योजना का बजट, उपयोग, लाभार्थी सूची और कार्य स्थिति सार्वजनिक होना चाहिए। आम नागरिक आसानी से जांच सके कि पैसा कहाँ गया। - कड़े दंड और तेज कार्रवाई
भ्रष्ट अधिकारी पर त्वरित कार्रवाई, सेवा से बर्खास्तगी और कानूनी दंड—ये संदेश देते हैं कि भ्रष्टाचार “जोख़िम” वाला काम है। - जनता की जागरूकता
जब लोग रिश्वत देने से इनकार करेंगे, शिकायत दर्ज कराने से नहीं डरेंगे, और “सिस्टम ऐसी ही चलता है” वाली सोच छोड़ देंगे, तभी बदलाव स्थायी होगा।
भ्रष्टाचार से लड़ाई किसकी जिम्मेदारी?
सिर्फ सरकार की नहीं, सिर्फ नागरिकों की नहीं—यह संयुक्त जिम्मेदारी है।
सिस्टम तभी सुधरेगा जब:
आम लोग “ना” कहना सीखें
अधिकारी “दंड” देना सीखें
तकनीक “पारदर्शिता” लाए
और समाज “ईमानदारी” को सम्मान दे
जब यह चारों बातें साथ आएंगी, तभी ईमानदारी का सूरज उगेगा, और व्यवस्था भ्रष्टाचार के साए से बाहर आएगी।