यातायात नियमों की अनदेखी से बढ़ते सड़क हादसे और हमारी सामूहिक जिम्मेदारी
आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में इंसान जितना तेज़ कामयाबी की ओर भाग रहा है, उतनी ही तेज़ी से मौत की ओर भी फिसलता जा रहा है। सड़कों पर रफ्तार का शोर अब सिर्फ़ इंजनों का नहीं, बल्कि संवेदनाओं के टूटने का भी प्रतीक बन चुका है। हर दिन कहीं न कहीं कोई सड़क हादसा किसी परिवार की हंसी छीन लेता है, किसी माँ की गोद सूनी कर देता है, या किसी बच्चे के सपने अधूरे छोड़ देता है।
🚨 लापरवाही की कीमत – ज़िंदगी
हादसों के कारणों की सूची लंबी है — तेज़ रफ़्तार, मोबाइल पर बात करते ड्राइवर, बिना हेलमेट या सीट बेल्ट के सफ़र, नशे में वाहन चलाना, और सबसे खतरनाक — यातायात नियमों की अवहेलना। सड़क पर लाल बत्ती सबको दिखती है, पर उसे नज़रअंदाज़ करने की आदत बन चुकी है।
कई लोग यह सोचते हैं कि “कुछ नहीं होगा”, लेकिन यही सोच किसी और की जिंदगी पर भारी पड़ जाती है। हर साल देश में लाखों लोग सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं, जिनमें बड़ी संख्या युवाओं की होती है — जो राष्ट्र का भविष्य हैं।
⚙️ व्यापारिक और प्रशासनिक लापरवाही भी कम नहीं
सड़कें टूटी हुई, सिग्नल बंद, ट्रैफिक पुलिस की कमी, और भ्रष्टाचार की परतों में फंसी परिवहन व्यवस्था — यह सब हादसों की बड़ी वजहें हैं। जब नियम सिर्फ़ कागज़ों में रह जाएँ, और सड़कें मौत के मैदान बन जाएँ, तब यह सवाल उठना लाज़मी है — आखिर जवाबदेही किसकी है?
💭 समाधान – सिर्फ सख़्ती नहीं, समझदारी भी
सरकार को चाहिए कि वह सख़्त यातायात कानूनों के साथ लोगों में जागरूकता भी बढ़ाए। स्कूलों से लेकर दफ्तरों तक “सड़क सुरक्षा” को सामाजिक ज़िम्मेदारी की तरह लिया जाए। साथ ही, नागरिकों को भी यह समझना होगा कि ट्रैफिक नियमों का पालन किसी दबाव में नहीं, बल्कि अपनी और दूसरों की सुरक्षा के लिए है।
हर चौराहे पर एक सायरन बजता है — “ज़रा सोचिए, क्या यह रफ़्तार ज़रूरी है?”
क्योंकि एक पल की लापरवाही, किसी की पूरी ज़िंदगी छीन सकती है।
सड़कें सिर्फ़ यात्रा का साधन नहीं, सभ्यता का आईना हैं। इन्हें सुरक्षित रखना हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है।
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