15 नवंबर को हुए महान व्यक्तित्वों के निधन: इतिहास के पन्नों में दर्ज अमर विरासतें
भारत के इतिहास में 15 नवंबर केवल तिथि नहीं, बल्कि उस दिन को याद करने का अवसर है, जब कई महान विभूतियाँ इस पृथ्वी से विदा होकर अपनी अमर स्मृतियाँ छोड़ गईं। साहित्य, समाज सेवा, अभिनय, इतिहास, आध्यात्म और क्रांतिकारी विचारों की अलग-अलग राहों पर चलने वाले इन व्यक्तियों ने अपने जीवन से वह उदाहरण स्थापित किए, जिन्हें समय कभी मिटा नहीं सकता।
2021 – बाबासाहेब पुरंदरे
बाबासाहेब पुरंदरे, जिन्हें “शिवशाहीर” भी कहा जाता है, मराठी साहित्य, इतिहास और नाटक जगत की सबसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों में गिने जाते थे। उनका महाकाव्यात्मक नाटक ‘जय जय महाराष्ट्र माझा’ और छत्रपति शिवाजी महाराज पर लिखा गया विस्तृत ऐतिहासिक साहित्य उनकी गहन शोध क्षमता का प्रमाण है। उन्होंने शिवकाल की गौरवगाथा को आम जनता तक पहुँचाने में जीवन समर्पित किया। उनके निधन से मराठी संस्कृति और इतिहास प्रेमियों की दुनिया में गहरी रिक्तता उत्पन्न हुई।
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2020 – सौमित्र चटर्जी
प्रसिद्ध बंगाली अभिनेता सौमित्र चटर्जी, सत्यजीत रे के प्रिय कलाकारों में से एक थे। उनकी असाधारण अभिनय शैली ने भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाई। ‘अपूर संसार’, ‘चारुलता’, ‘अभिजान’ जैसी क्लासिक फिल्मों में उनका प्रदर्शन आज भी अभिनय कला का मानक माना जाता है। मंच, कविता, लेखन और आवाज—हर क्षेत्र में वे प्रतिभा की मिसाल थे। उनका निधन भारतीय कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति थी।
2013 – कृपालु महाराज
मथुरा के प्रसिद्ध संत कृपालु महाराज अपने आध्यात्मिक ज्ञान, भक्ति आंदोलन में योगदान और ‘प्रेम मंदिर’ जैसी भव्य संरचना के लिए विश्वभर में जाने जाते हैं। उनका उपदेश प्रेम, करुणा, सरलता और कृष्ण भक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने दुनिया भर में असंख्य लोगों के जीवन में आध्यात्मिक परिवर्तन लाने का कार्य किया। उनकी भक्ति-साधना और दानशीलता का स्वरूप आज भी अनगिनत हृदयों में जीवित है।
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1961 – बंकिम मुखर्जी
बंकिम मुखर्जी भारत के पहले ऐसे कम्युनिस्ट नेता थे जो विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। सामाजिक न्याय, मजदूरों के अधिकार, और समानता वाली राजनीति के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने भारतीय मजदूर आंदोलन को एक वैचारिक दिशा दी। संघर्षों के बीच भी वे जनता के बीच जमीन से जुड़े नेता के रूप में प्रसिद्ध थे। उनका निधन भारतीय वामपंथी राजनीति में एक संवेदनशील अध्याय का अंत था।
1937 – जयशंकर प्रसाद
आधुनिक हिन्दी साहित्य के स्तंभ जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रमुख कवि, नाटककार और उपन्यासकार थे। ‘कामायनी’, ‘आंसू’, ‘स्कंदगुप्त’ जैसी रचनाएँ हिन्दी साहित्य को नई गहराई और दर्शन प्रदान करती हैं। वे भाषा में सौंदर्य, भाव और भावना की शक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। प्रसाद का निधन साहित्य जगत के लिए ऐसा क्षण था, जिसने हिन्दी भाषा को सदैव के लिए एक अनमोल मार्गदर्शक खो दिया।
1938 – महात्मा हंसराज
पंजाब के महान आर्य समाजी नेता, समाज सुधारक और शिक्षा के अग्रदूत महात्मा हंसराज, डीएवी संस्थान के प्रमुख स्तंभ थे। उन्होंने शिक्षा के माध्यम से समाज परिवर्तन की नींव रखी और भारतीय युवाओं को आधुनिक परंतु संस्कारयुक्त शिक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी सेवाओं ने शिक्षण के क्षेत्र में नए मानदंड स्थापित किए। उनका जीवन समाज उत्थान और राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण का प्रतीक रहा।
1982 – विनोबा भावे
विनोबा भावे गांधीवादी दर्शन के सर्वश्रेष्ठ अनुयायियों में से थे। ‘भूदान आंदोलन’ के माध्यम से उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से सामाजिक समरसता का वह मार्ग दिखाया, जिसकी मिसाल विश्व में दुर्लभ है। वे साधना, तपस्या और नैतिक नेतृत्व के प्रतीक थे। साधारण जीवन जीते हुए उन्होंने असमानता मिटाने के लिए पूरी उम्र समर्पित कर दी। उनका निधन युगांतकारी विचारधारा के महान संत का विदा होना था।
1996 – आर.सी. प्रसाद सिंह
आरसी प्रसाद सिंह हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि, कथाकार और एकांकीकार थे। उनकी लेखनी में समाज, मानव संवेदना और बदलते परिवेश की तीव्र अनुभूति झलकती थी। भाषा की सरलता और विषयों की गहराई ने उन्हें साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। उनके नाटक और कविताएँ आज भी साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका निधन हिन्दी साहित्य को एक संवेदनशील रचनाकार से वंचित कर गया।
1981 – कमलाबाई होसपेट
कमलाबाई होसपेट महाराष्ट्र की जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जिन्होंने महिलाओं और वंचित वर्गों की upliftment के लिए लंबा संघर्ष किया। शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला अधिकारों के लिए उनके द्वारा चलाए गए अभियान व्यापक सामाजिक परिवर्तन का आधार बने। वे ग्रामीण क्षेत्रों की आवाज थीं और उन्होंने समाज सेवा को जीवन का धर्म माना। उनका निधन समाज सेवा के क्षेत्र में बड़े शून्य का कारण बना।
2017 – कुंवर नारायण
कुंवर नारायण आधुनिक हिन्दी कविता के अत्यंत सम्मानित कवि थे, जिनकी रचनाएँ मानवीय संवेदनाओं, इतिहास, दर्शन और सामयिक प्रश्नों की गहरी पड़ताल करती हैं। उनकी कविता में बौद्धिकता और भावनात्मकता का अनूठा संतुलन मिलता है। ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित कई सम्मान उनके रचनात्मक वैचारिक योगदान का प्रमाण हैं। उनका निधन हिन्दी साहित्य के स्वर्णिम अध्याय का खोना माना जाता है।
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