July 7, 2025

राष्ट्र की परम्परा

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अंग्रेजों के जमाने की जेल में एक भी कैदी नही

बलिया(राष्ट्र की परम्परा)

अंग्रेजों के जमाने का
जेल महीनों से बंदी बिहीन है। प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज के निर्माण के लिए कारागार की जमीन को चिह्नित करने के बाद करीब करीब छह माह पहले यहां के सभी बंदियों को वाराणसी आजमगढ़ और मऊ शिफ्ट कर दिया गया। उसके बाद से बलिया का बंदीगृह बंद पड़ा है।
रोजाना छोटे-बड़े मामलों में गिरफ्तार आरोपियों को पुलिस गैर जनपद भेज रही है। अंग्रेजों ने वर्ष 1917 में शहर के उत्तरी इलाके में पुलिस लाइन से सटे करीब 14.6 एकड़ जमीन पर जिला जेल का निर्माण कराया था। स्वतंत्रता अआंदोलन के दौरान शेरे बलिया चित्तू पांडेय, पडित महानंद मित्र समेत अन्य सेनानियों को इसी जेल में बंद रखा
शासन ने जुलाई 2024 में खाली करा दिया या बन्दीगृह.

नए जेल मदन के निर्माग को अबतक जमीन भी नहीं

बलिया कारागार की भूमि पर होना है मेडिकल कॉलेज का निर्माण

मजबूरी में हर दिन गैर जिला भेजे जा रहे हैं गिरफ्तार लोग कुछ दशकों से शहर का विस्तार हुआ तो जेल के आसपास कालोनियां बस गई। 339 बंदियों की 0क्षमता वाले जिला कारागार में अक्सर दो गुना से भी अधिक बन्दी रखे जाते थे। जिले में मेडिकल कॉलेज के निर्माण की योजना बनी तो जमीन की तलाश होने लगी। जिला प्रशासनको जेल को जमीन मुफीद लगी, वहां मेडिकल कॉलेज के निर्माण की मंजूरी मिल गई। जुलाई 2024 में जेल के बंदियों को गैर जनपद शिफ्ट करा कर कैदियों को सेंट्रल जेल (वाराणसी)जबकि विचाराधीन बंदियों को आमजगद और मऊ की जेलों में पहुंचा दिया गया। जेल की जमीन मेडिकल कॉलेज के नाम से खतौनी में दर्ज भी हो गई। नए जिला जेल के लिए शहर से करीब नौ किमी दूर नारायणपाली गांव में 60 एकड़ जमीन चिन्हित तो हुई लेकिन अंतिम मुहर अबतक नहीं लग सका है। पेशी पर हर दिन वाहन से कोर्ट लाएं जाते हैं बंदी: गैर जनपदों से बंदियों को पेशी पर लाने व ले जाने के लिए पुलिस की बड़ी गाड़ी तथा एक दर्जन पुरुष और महिला पुलिसकर्मी भी लगते है

| परिजनों को मुलाकात में होती है कठिनाई

बंदियों के गैर जनपदों के जेलों में बंद होने से उनके परिजनों को भी हो रही है कठिनाई। मुलाकात के लिए परिजन सुबह ही यहां पहुंच जाते है ताकि उनका रजिस्ट्रेशन हो सके। लम्बे इंतजार के बाद यह भेंट करने में कामयाब हो पाते हैं। कई बार समय से नहीं पहुंचने पर बैरंग ही लौटना पड़ता है। आर्थिक नुकसान अलग से होता है।हर दिन मऊ और आजमगढ़ की दौड़ लगाते हैं। सूत्रों की मानें तो सुबह पेशी पर लेकर आने वाले जवान थानों द्वारा पकड़े गए अन्य आरोपियों को साथ लेकर वापस जाते हैं। रात में पुलिसकर्मी आजमगढ़ अथवा मऊ में हो रुक जाते हैं।