March 12, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

कवि की कविता की सीमा

कवि की कविता की सीमा है,
वह जितनी कल्पना करता है,
बस उतना ही तो कह पाता है,
शेष सभीअनकहा रह जाता है।

मन जब खोया खोया लगता है,
तब तन भी मुरझाया सा लगता है,
पर खोया कभी कहाँ मिल पाता है,
बस मिला हुआ भी खो जाता है ।

मानव जीवन में तो अक्सर ही,
ऐसे अवसर भी आते जाते हैं,
कोई अपनी बीती अपनों और
परायों से भी कहने लग जाते हैं।

उसको तब ऐसा लगने लगता है,
आगे पीछे का तारतम्य कुछ ढूँढ सकूँ,
मन में ख़ालीपन का एहसास भरा,
उस सूनेपन को कैसे परिपूर्ण करूँ।

घनी आबादी के जन मानस में,
अब क्यों सूना सूनापन लगता है,
यूँ गुथी हुई मालाओं के भी क्यों,
ज़्यादातर तार पिरोना पड़ता है।

आदित्य यही दुविधा जीवन भर,
हर इन्सान को झेलना पड़ता है,
भाग दौड़ की आपाधापी में उसको,
आजीवन हर पल गुजरना पड़ता है।

  • डा. कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’ ‘विद्यावाचस्पति’