
भारतीय संत परंपरा में संत कबीर दास जी एक प्रमुख नाम हैं। उनकी सखी-सबद-रमैनी की त्रिवेणी से निकली पंक्तियां आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। संत कबीर दास जी का परिनिर्वाण दिवस माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। संत कबीर दास का जन्म 15वीं शताब्दी में वाराणसी लहरतारा में हुआ था। अपने दोहों में उन्होंने ईश्वर की एकता और मानवता की महत्ता को प्रतिपादित किया।
संत कबीर दास जी की रचनाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। उनकी साखियों में जीवन के मूल्यों, नैतिकता, और आध्यात्मिकता के बारे में बताया गया है। उन्होंने अपनी रचनाओ में समाज में व्याप्त कुरीतियों और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई।
संत कबीर परिनिर्वाण दिवस पर उनकी परिनिर्वाण स्थली मगहर में कबीरदास जी के जीवन और उपदेशों को याद करते हुए प्रतिवर्ष मनाया जाता है। इस दिन लोग बीजक का पाठ करते हुए उनकी शिक्षाओं और उपदेशों को याद करते हैं। लोग संत कबीर की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें अपने जीवन में आत्मसात करने का संकल्प लेते हैं।
संत कबीर जैसा दिग्गज व फक्कड़ संत ही कह सकता है –
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
संत कबीर दास जी दो पंक्तियों में जीवन का सार कहने की कला में पारंगत हैं।
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