
जीवन सफल बनाने में एक नियम
का पालन तो बहुत ज़रूरी होता है,
अपने आप से सदैव सच ही बोलो,
जो सच है, उसको नहीं झुठलाओ।
आप सामर्थ्यवान हैं तो औरों को
भी तो सामर्थ्यवान बनाना सीखो,
उस के लिये तो यह महान भेंट है,
ज़रूरत मंद के लिये समर्थन दो।
जिस तरह दूध से मलाई, मक्खन,
घृत एक एक कर निकाले जाते हैं,
औरों के लिए की गयी भलाई के
अंत में अद्भुत फल सबको मिलते हैं।
भलाई का अंत सदा भला ही होता है,
अपनी शोहरत पर नाज़ नहीं करना,
हमें सदा यह याद रहे, अंतिम यात्रा में
सबको औरों के कंधों पर है जाना।
इसीलिए यह भी याद रहे औरों के
दिल में जो जगह मिली है हमको,
वह अच्छी करनी के कारण ही है,
इंसान की वही असली दौलत है।
हमारी अच्छाई को जो लोग नहीं
समझते या समझना नही चाहते हैं,
उनसे रिश्तों की परवाह नहीं करो,
जो समझते हैं उनकी परवाह करो।
इसलिए आदित्य यह विनती करते हैं,
जो करो, पूर्ण समर्पण के साथ करो,
प्रेम करो मीरा सा, मित्र कृष्ण जैसा,
शबरी सी प्रतीक्षा, शिष्य अर्जुन सा।
भक्त बनो श्रीहनुमान जी जैसा सा,
समर्पण हो गीधराज जटायु जैसा,
दानवीर दधीचि, सूतपुत्र कर्ण जैसा,
त्याग मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जैसा।
- कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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