सिकंदरपुर /बलिया (राष्ट्र की परम्परा)। स्वामी रामदास जी महाराज’ सिकन्द्रपुर (बलिया), क्षेत्र के सरयू तटवर्ती गांव दुहा विहरा में पूर्व मौनव्रती स्वामी ईश्वरदास बहह्मचारी जी महाराज की कृपा से आयोजित चालीस दिवसीय अद्वैत शिवशक्ति राजसूय महायज्ञ में व्यासपीठ से स्वामी रामदास जी महाराज ने बताया कि सन्त को भगवन्त इसलिए कहा जाता है कि वे अपने लिए नहीं बल्कि जगत के कल्याण के लिए तन धारण करते हैं- परमारथ के कारने साधुन्हधरा शरीर । सन्त की कृपा तो होती है किन्तु हम अनुभव नहीं कर पाते। सौभाग्य है आपका जो आपने श्री मौनीजी महाराज जैसे सन्त का सान्निध्य पाया हुआ है। कहा कि भागवत के प्रथम स्कन्ध में केवल सत्य की ही वन्दना है। सत्यं परं धीमहि । विश्व ब्रह्माण्ड में से त्य एकमात्र परमात्मा ही है-सत्यं परं सत्य पूरे त्रिसत्वम् सत्य जैसाअन्य कोई धर्म भी नहीं। निगम रूपी कल्पतरु भागवत में रस ही रसहे, इसका कुछ भी अंश त्याज्य नहीं। इस कथा के रसिक, प्रेमी, प्यासे और भावुक ही इसका मर्म, महत्त्व समझेंगे और पागलों की तरह कथा सुनने दौड़े आयेंगे, ८८ हजार ऋषि-मुनि इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। परीक्षित ने शुकदेव स्वामी कुछ सामयिक प्रश्न किया-मानन मात्र का कल्याण कैसे होगा ? भगवान सर्व समर्थ हैं तो सृष्टि का विनाश क्योंइित्यादि सभी प्रश्नों का समाधान शुकदेव जी ने कर दिया। जन्मजात ज्ञानवृद्ध वैरागी होने सबके पूज्य हुएण दिखाउ, वैराग्य धोखा है। जागतिक सम्बन्ध नश्वर है, इससे वास्तविक वैराग्य ढक जाता है। जीब इन सम्बन्धों से मलिन हो जाता है भूमि परत भा डाबर पानी, जनु जीवहिं माया लपिटानी।” इसी से शुकदेव जी माँ के उदर से बाहर नहीं निकल रहे थे। माया को सभी भजते किन्तु माधवको विरले । माया में नाचने वाला जीवात्मा, माया से अनासक्त रहने वाला महात्मा और जिसके इशार पर मावा नाचती है, वहीं है परमात्मा । घर के मालिक तो बनते हैं किन्तु क्या आप अपने शरीर के मालिक हैं? घर के मालिक के रूप में नृत्यगोपाल का विग्रह रखें। उन्होंने आगे कहा कि शास्त्रोक्त करणीय कर्म निष्काम भाव से करें किन्तु मन में प्रभु की स्मृति बनाये रखें। शरीरगत सम्बन्ध तो बहुत हैं, किन्तु प्राषों के पति तो परमात्मा ही है। माता-पिता की सेवा करना धर्म है किन्तु जो उनके भी माँ-बाप है उनकी सेवा करना परम धर्म है। जीवन का सफर जन्म से शुरू हुआ, जब स्टेशन आयेगा तो जीवन की गाड़ी से उतरना ही पड़ेगा। व्यास रचित भागवत संहिता का अधिकार शुकदेव स्वामी को मिला। आज के विषाक्त वातावरण में सन्तति को सुन्दरर संस्कार देने की आवश्यकता है। श्रीमद्भागवत कथा के माध्यम से बक्ता ने समरस समाज की संरचना हेतु शिक्षात्मक प्रेरणा प्रदान की ताकि किसी को कौरवों जैसी दुर्गति के दिन देखने को न मिलें। अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा को मणिहीन कर देने के बाद उत्तरा के गर्भ की रक्षा हेतु अंगुष्ठ मात्र शरीर धारण कर कृष्ण जी उसके गर्भ में प्रविष्ट हो गर्भस्थ शिशु की र रक्षा करते हैं।
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