गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा शोध की गुणवत्ता बेहतर करने की दिशा में आयोजित ‘शोध-संवाद’ कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. चित्तरंजन मिश्र ने कहा कि जिस तरह हर अच्छे इंसान के कुछ अंतर्विरोध होते हैं। इसी तरह हर अच्छी कविता में भी अंतर्विरोध होता है। अंततः हमारा विवेक तय करता है कि हम उस अंतर्विरोध के किस पक्ष में खड़े होते हैं।
ज्ञात हो कि ‘शोध-संवाद’ हिंदी विभाग की एक नई पहल है। जिसका उद्देश्य शोधर्थियों को परिष्कार हेतु मंच प्रदान करना, शोध की गुणवत्ता में सुधार आदि लाना है। इसी के तहत शनिवार को तीसरे शोध पत्र की प्रस्तुति प्रदीप विश्वकर्मा ने ‘श्रीरामचरितमानस में अभिव्यक्त मानव-मूल्य’ विषय पर की।
इसी शोध पत्र से जनित सवालों का अपने उद्बोधन में समग्रता से उत्तर देते हुए प्रो.चित्तरंजन मिश्र ने कहा कि तुलसीदास पर विचार व्यक्त करते हुए रामकथा के प्रसंगों के आधार पर तुलसीदास की आलोचना बुनियादी चूक है। सीता-निर्वासन और शम्बूक-वध का जिक्र तुलसी की रामकथा में न होना, उनकी शक्ति है। तुलसीदास की दृष्टि में सीता-निर्वासन व शम्बूक-वध न्याय-संगत नहीं है। इसी वजह से रामराज्य की कल्पना में उन्होंने इन दोनों प्रसंगों को स्थान नहीं दिया। इस सन्दर्भ में तुलसीदास की रामकथा विशिष्ट है।
प्रोफेसर चितरंजन ने कहा कि ‘मूल्य’ का अर्थ ‘छोड़ना’ होता है। आप कोई चीज लेते हैं, तो उसके बदले कुछ छोड़ते हैं। इसी प्रक्रिया से मूल्य बनते हैं। राम बड़ा मूल्य स्थापित कर सके क्योंकि उनमें राज्य सत्ता छोड़ने का साहस था।
इस संवाद कार्यक्रम की परिकल्पना हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर कमलेश कुमार गुप्त ने की थी। जो अब चरणबद्ध रूप से गतिमान है। प्रत्येक सप्ताह के हर शनिवार को किसी एक शोधार्थी द्वारा स्वेच्छा शोध पत्र प्रस्तुत किया जाता है। जिसमें विभाग के लगभग सभी शिक्षक एवं शोधार्थी इत्यादि उपस्थित होते हैं।
शोध संवाद कार्यक्रम का संचालन एवं आभार ज्ञापन डॉ. नरेंद्र कुमार ने किया। इस योजना के समन्वयक प्रोफेसर विमलेश कुमार मिश्र हैं। इस कार्यक्रम का सबसे दिलचस्प पहलू है अन्य शोधार्थियों द्वारा शोध पत्र प्रस्तुत करने वाले शोधार्थी से सवाल करना।
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