November 21, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

अनपढ़ व पढ़ी लिखी पीढ़ी

क्या वह पीढ़ी ही अनपढ़ थी या
हम पढ़ लिख कर भी अनपढ़ हैं,
एबीसीडी क्या पढ़ ली, उनकी
आस्था को कहते हम बुढ़बक हैं।

वह पढ़े लिखे तो कम होंगे,
पर छाया देख समय बतलाते थे,
धूप छाँव पाने की ख़ातिर,
पीपल, वटवृक्ष लगाते थे।

झब्बर झब्बर चले पुरवाई,
तब जानौ वर्षा ऋतु आई,
पूर्वानुमान लगाते थे, वह
सबको आस बँधाते थे।

उठे कांकड़ा फूली कांस,
अब नाहीं वर्षा की आस,
वह भविष्य वाणी करते थे,
सच्चाई जग को बताते थे।

तुलसी माँ की पूजा करते थे,
पीपल, बरगद भी पूजे जाते थे,
घर की मुँडेर पर चिड़ियों का,
पानी भर कर रखवाते थे।

कुएँ से पानी खींच खींच कर,
बाल्टी लोटे से नहाते थे,
यदि नल का पानी आवे घर
में तो नाली में नहीं बहाते थे।

सब्ज़ी के छिलके, कूड़ेदान में
नहीं, गायों को ही खिलाते थे,
शीशे का बर्तन यदि टूटे तो
कूड़ेदान से अलग रखवाते थे।

गीता, रामायण, वेद पाठ,
उपनयन संस्कार करवाते थे,
सुबह शाम मंदिर में पूजा,
ईश्वर से नित मिलवाते थे।

आस्था विश्वास अटल उनके,
हम सबको डाँट पिलाते थे,
जड़ ज़मीन जंगल फैले, उत्तम
कृषि, पशु पालन साधन थे।

अब सब कुछ धरती पर खोकर,
आदित्य विनाश ले आये हैं,
क्या वह पीढ़ी ही अनपढ़ थी, या
हम पढ़ लिख कर भी अनपढ़ है।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ