मेरी कविता: कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य‘
रावण की भगिनी सूर्पनखा की
नासिका लक्ष्मण ने क्यों काटी थी ?
बदले में ही लंकापति रावण ने सीता
छल से पंचवटी से चुरा ली थी !
रावण ज्ञानी बलशाली नीतिज्ञ
महान, राम नही इतने काबिल थे,
पर लंकापति रावण ने सीता की
नाक नहीं काटी, वह तो मर्यादा में थे ।
इतना सब कहने के साथ हरि निंदक
और भी बुरी बातें कर रहे जमाने में,
श्री राम व राम कथा को ही वह अब
काल्पनिक कह रहे सारी दुनिया में ।
कोई भी मित्र अचानक ही आपसे
यदि यह सब ईश्वर निंदा में कह दे,
प्रतिकार नही हम कर सकते ऐसे
कटु वचन चुप होकर ही सुनते रहें।
ईश्वर की निंदा पढ़ सुन कर हमको
उसका प्रतिकार करना ही चाहिये,
प्रतिकार अगर ना कर पाते तो फिर
प्रायश्चित्त स्वयं ही करना चाहिए।
निंदा ईश्वर की और गुरु की जग
में मानी जाती है अति महा पाप,
पढ़ना, सुनना भी भगवत् निंदा,
गोहत्या समान होता है बड़ा पाप ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन
की मर्यादा धरा में व्यापक है,
उनकी पावन जन्म भूमि अयोध्या
आज भी साक्षात् विद्यमान है ।
राजा जनक की मिथिला नगरी,
सीता जानकी जहाँ हुई पैदा,
रावण की लंका भी लंका दहन के
बावजूद आज भी है मौजूदा ।
चक्रवर्ती राजा दशरथ, कौशल्यादि
महारानी श्री राम आदि की मातायें,
राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघन उन
सबकी मिथिला की ब्याही कन्यायें ।
बाली, सुग्रीव, श्री हनुमान, नील, नल
अंगद, जामवन्त, जटायु गीध सरस,
वानर सेना के सब वानर, राम-रावण
संग्राम हेतु आदित्य सब अवतारी थे।
वशिष्ठ, विश्वामित्र गुरू, ऋषियों
मुनियों के रघुकुल का कौशलपुर,
रावण दसमुख की सोने की लंका,
इनमे से कोई नहीं काल्पनिक थे ।
सैकड़ों, सहस्त्रों रामायण, श्री राम
कथा के विधिवत वर्णन में दूर देश
तक हर भाषा, हर लिपि में कवियों,
महाकवियों ने महाकाव्य हैं रच डाले ।
हे ईश्वर यह अपराध बोध हो रहा,
हरि हर निंदा का अघ बोझ हो रहा,
क्षमा करें अपराध प्रभू प्रतिकार और
न प्रायश्चित्त आदित्य है कर पाया।
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