
भ्रान्तियां को दूर करने के लिए आप के अपने प्रिय अखबार राष्ट्र की परम्परा के लिए शशांक मिश्रा ने आचार्य अजय शुक्ल से बातचीत की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश
भ्रान्ति 1- पितृ पक्ष में पूजा पाठ घर में दीपक धूप आदि नहीं करना चाहिए?
उत्तर – आप अपने दैनिक जीवनचर्या में जो भी जप पाठ संध्या,ठाकुर जी लड्डू गोपाल जी, शिवलिंग आदि की सेवा उपासना भोग आरती, सायं कालीन धूप दीपक करते हैं वे सभी नित्य की ही भांति करते रहेंगे। अपितु प्रातः की पूजा पाठ जप उपासना आदि के बाद किए गए पिंडदान तर्पण आदि से पितृ गण को विशेष तृप्ति शान्ति प्राप्त होती है।
भ्रान्ति 2– जिनके घर विवाह आदि हुआ है वे तर्पण आदि नहीं करेंगे।
उत्तर – तर्पण तो वैसे भी बारहों मास किए जाने वाले संध्या उपासना पूजा पाठ का हिस्सा है। अतः ऐसे घरों में तर्पण, जरूरतमंदों सुपात्रों को किए जाने वाले दान उपदान आदि होने चाहिए। बस पिंडदान (पार्वण श्राद्ध/सामवत्सरिक श्राद्ध) एवम् क्षौर कर्म (मुंडन) नहीं होगा।
भ्रान्ति 3– श्री गया धाम में पिंड दान आदि कर लेने के बाद तर्पण अथवा पिंडदान आदि नहीं करना चाहिए।
उत्तर – सत्यता यह है कि पितरों के रूप में हम स्वयं भगवान श्री विष्णु जिन्हें पितृ रूपी जनार्दन कहते हैं उनकी सेवा अर्चना तृप्ति करते हैं जिसके कारण हमारे कुल के पूर्वजों व स्वयं हमारा कल्याण उद्धार आदि होता है। अतः गया श्राद्ध कर लेने के बाद भी सामर्थ्य एवम् क्षमता के अनुसार पिंडदान करना चाहिए। रही बात तर्पण की तो वह सदैव (कम से कम पूरे पितृ पक्ष) करना चाहिए।
भ्रान्ति 4– पितृ पक्ष में खान पान से संबंधित कोई निषेध नहीं हैं।
उत्तर – जिस प्रकार श्रावण में श्री नारायण की पूजा उपासना पूरे महीने शुद्ध सात्विक रहते हुए, नवरात्रि में मां जगदम्बा की विशेष सेवा अर्चना व्रत उपासना करते हैं। वैसे ही पितृ पक्ष में पूरे 16 दिन मसूर की दाल कुल्थी, लहसुन, प्याज मांस, मदिरा, गुटका तंबाकू अथवा किसी भी मादक द्रव्य का त्याग करके शुद्ध सात्विक आहार, ब्रम्हचर्य आदि संयम का पालन करते हुए पितृ रूप श्री नारायण की सेवा करते हुए स्वयं के कल्याण व पूर्वजों के सद्गति की प्रार्थना करनी चाहिए।
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