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कुछ नशा मातृभूमि की शान का है,
कुछ नशा तिरंगे की आन का है।
77वें स्वतंत्रता दिवस पर लहराएँगे
तिरंगा, नशा भारत के सम्मान का है।
अमृत महोत्सव देश की आज़ादी का,
हर अट्टालिका पर और हर गुम्बज पर,
राष्ट्रगान हम गाएँगे, तिरंगा फहरायेंगे,
वंदेमातरम् का नारा बुलंद कर पायेंगे।
याद आ रहे हैं लाल, बाल व पाल हमें
गांधी, सुभाष और जवाहर लाल हमें,
शहीद भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु,
हँसते हँसते फाँसी चढ़े थे क़ुर्बानी में।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
मेरा रंगदे वसंती चोला वै रंगदे वसंती चोला,
गाते गाते हर गलियों में हर टोले में,
आज़ाद लड़े थे इस जंगे आज़ादी में।
संकल्प हमारा है देश के लिये मर-
मिटने का, जब भी अवसर आएगा,
ख़ुशी ख़ुशी सूली पर चढ़कर एकबार,
फिर सारा भारत जुटकर दिखलाएगा,
जय जय जवान, जय हो किसान,
जय विज्ञान और जय हिंद का नारा,
एक बार ज़ोरों से होगा फिर बुलंद,
जीतेंगे सारी कायनात व हर एक जंग।
सत्य-अहिंसा व धर्म का प्यारा नारा,
गागाकर झंडा ऊँचे से ऊँचा फहराएँगे,
आदित्य नशा मातृभूमि की शान का है,
और कुछ नशा तिरंगे की आन का है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
लखनऊ
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