August 7, 2025

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प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा: एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत-चीन संबंधों की नई दिशा की उम्मीद

नई दिल्ली (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीन के तियानजिन शहर में आयोजित होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन का दौरा करेंगे। यह दौरा इसलिए भी बेहद अहम माना जा रहा है क्योंकि 2020 की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद यह प्रधानमंत्री मोदी की पहली चीन यात्रा होगी।

इससे पहले उन्होंने वर्ष 2019 में चीन की यात्रा की थी, जब भारत और चीन के बीच रिश्ते अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण थे। लेकिन गलवान संघर्ष के बाद दोनों देशों के संबंधों में खटास आ गई थी, और संवाद के सभी रास्ते लगभग बंद हो गए थे। अब इस बहुपक्षीय मंच पर दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व के आमने-सामने आने से फिर से बातचीत की संभावनाओं को बल मिलेगा।

क्या है एससीओ का महत्व?
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक प्रमुख क्षेत्रीय संगठन है, जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और हाल ही में शामिल हुए ईरान जैसे देश शामिल हैं। यह संगठन क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद निरोध, आर्थिक सहयोग और कनेक्टिविटी जैसे अहम मुद्दों पर सामूहिक विमर्श और समन्वय का मंच प्रदान करता है।

संभावित एजेंडा: क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद और व्यापार
सूत्रों के अनुसार, इस बार के शिखर सम्मेलन में क्षेत्रीय सुरक्षा, उग्रवाद और सीमा पार आतंकवाद जैसे गंभीर विषयों पर खुलकर चर्चा की जाएगी। इसके साथ ही व्यापार, निवेश और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्र भी प्राथमिक एजेंडे में होंगे।

भारत इस मंच का उपयोग क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सामूहिक प्रयासों पर ज़ोर देने और आतंकवाद के खिलाफ एक सख्त रुख अपनाने के लिए करेगा। इसके साथ ही, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना के अनुरूप, समावेशी विकास और सहयोग की वकालत की जाएगी।

भारत-चीन संबंधों में नई शुरुआत की उम्मीद
प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ एक द्विपक्षीय बैठक की संभावनाएं भी जताई जा रही हैं, हालांकि इसकी अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। अगर यह बैठक होती है, तो यह दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर जमी बर्फ को पिघलाने का एक बड़ा मौका हो सकता है।

विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “प्रधानमंत्री की यह यात्रा क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने और पड़ोसी देशों के साथ संवाद बहाल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगी।”

नजरें रहेंगी इस यात्रा पर
इस यात्रा को लेकर दुनिया भर की राजनयिक निगाहें टिकी हुई हैं। भारत और चीन जैसे एशियाई महाशक्तियों के बीच संवाद और सहयोग न केवल क्षेत्रीय स्थिरता, बल्कि वैश्विक संतुलन के लिए भी बेहद जरूरी है।