देवरिया जनपद में शोपीस बनकर रह गया है एंटी भू-माफिया पोर्टलजनता की उम्मीदों पर पानी, जिम्मेदारों की लापरवाही उजागर - राष्ट्र की परम्परा
August 19, 2025

राष्ट्र की परम्परा

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देवरिया जनपद में शोपीस बनकर रह गया है एंटी भू-माफिया पोर्टलजनता की उम्मीदों पर पानी, जिम्मेदारों की लापरवाही उजागर

(देवरिया से सुधीर राय की रिपोर्ट)

देवरिया (राष्ट्र की परम्परा) जनहित में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘एंटी भू-माफिया पोर्टल’ की शुरुआत की गई थी। शासनादेश संख्या-402/1-2-2017-1(सामान्य)/2017 दिनांक 01 मई 2017 तथा परिषादेश संख्या-आर-1082/जी-5-01अति/2017 दिनांक 08 मई 2017 के तहत यह पोर्टल संचालित किया गया, जिसका मकसद था कि जनता सरकारी या निजी भूमि पर अवैध कब्जे की शिकायतें ऑनलाइन दर्ज करा सके, और प्रशासन उन पर प्रभावी कार्रवाई करे।

परंतु देवरिया जनपद में यह पोर्टल अब सिर्फ कागजी खानापूर्ति और औपचारिकता बनकर रह गया है। ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयान कर रही है। संवाददाता के स्वय की आवेदन ने खोल दी पोल

“राष्ट्र की परंपरा” के संवाददाता ने जब स्वयं एक अवैध कब्जे के प्रकरण को लेकर पोर्टल पर शिकायत दर्ज की, तो इस पोर्टल की हकीकत सामने आ गई। आवेदन संख्या 41019025000198 के अंतर्गत शिकायत दर्ज की गई थी, जिस पर उप जिलाधिकारी देवरिया को आख्या प्रस्तुत करनी थी।

लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह रही कि संबंधित अधिकारियों द्वारा जवाब देने के बजाय संवाददाता के ही आवेदन को आख्या के रूप में अपलोड कर दिया गया। यानि शिकायतकर्ता की बात को ही प्रशासन की कार्रवाई बताकर प्रकरण को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।इस प्रकरण से यह साफ जाहिर होता है कि:न तो अधिकारीगण शिकायतों को गंभीरता से ले रहे हैं।न ही पोर्टल पर जनता को भरोसा रहा हैऔर न ही इस पोर्टल का कोई सतत अनुश्रवण (मॉनिटरिंग) हो रहा है

जनता को नहीं मिल रहा न्याय

इस पोर्टल का मूल उद्देश्य था जनता को भूमि कब्जाधारियों से मुक्ति दिलाना, लेकिन अब यह अपने उद्देश्य से पूरी तरह भटक चुका है। शिकायतें दर्ज होती हैं, लेकिन उनका न片संद समाधान होता है, न कार्रवाई, न फीडबैक।

देवरिया जनपद में ऐसे कई लोग हैं जो महीनों से अपनी शिकायतों पर कार्रवाई की बाट जोह रहे हैं। जनता में गहरी निराशा और आक्रोश है। न्याय के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है, लेकिन प्रशासन की ओर से केवल मौन और औपचारिकता मिल रही है।

क्या यही है “जनसुनवाई”?

जब एक संवाददाता का आवेदन ही मज़ाक बन जाए, तो आम जनता की फरियादों का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि क्या यह पोर्टल केवल “शोपीस” बनकर रह गया है? क्या शासन के उद्देश्य और आमजन की अपेक्षाओं के बीच कोई सेतु है भी या नहीं?