हफ्ते में फुंके तीन ट्रांसफार्मर महज दो घंटे मिली बिजली - राष्ट्र की परम्परा
August 18, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

हफ्ते में फुंके तीन ट्रांसफार्मर महज दो घंटे मिली बिजली

भागलपुर की आधी आबादी अंधेरे में बिजली विभाग बना मूक दर्शक

भागलपुर/देवरिया(राष्ट्र की परम्परा)
भीषण गर्मी से जहां आम जनजीवन बेहाल है, वहीं देवरिया जनपद के भागलपुर क्षेत्र में बिजली विभाग की लापरवाही लोगों पर भारी पड़ रही है। बीते एक हफ्ते में क्षेत्र में तीन ट्रांसफार्मर जल चुके हैं, लेकिन विभाग की ओर से कोई स्थायी समाधान नहीं किया गया। फिलहाल, इलाके की आधी आबादी सिर्फ दो घंटे बिजली मिलने पर ही संतोष करने को मजबूर है।

लगातार फूंके ट्रांसफार्मर, नहीं मिला स्थायी समाधान

जानकारी के अनुसार, भागलपुर के कालीचरण घाट पर लगा पहला ट्रांसफार्मर हफ्ते भर पहले जल गया इसके बाद जो ट्रांसफार्मर लगाया गया, वह आधे घंटे में ही फुंक गया। तीसरा ट्रांसफार्मर दो दिन चला और फिर वही हश्र। चौथे ट्रांसफार्मर का इंतजार जारी है, मगर कारणों की जांच तो दूर, विभागीय कर्मचारियों ने आज तक एक स्थायी कदम भी नहीं उठाया।

जनता खुद करा रही ट्रांसफार्मर इंस्टॉलेशन

स्थिति इतनी बदतर है कि स्थानीय लोग चंदा करके जेसीबी और क्रेन की व्यवस्था कर रहे हैं ताकि ट्रांसफार्मर लगवाया जा सके। विभाग केवल ट्रांसफार्मर भेजकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है।

बिजली चोरी और साठगांठ का भी आरोप

स्थानीय निवासियों का आरोप है कि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बिजली चोरी हो रही है, और जब कभी विभागीय कार्रवाई होती है, तो कुछ “ले-दे” कर मामला शांत करा दिया जाता है। इससे गलत संदेश जा रहा है और जनता का मनोबल गिर रहा है।
बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
गर्मी और अंधेरे की दोहरी मार झेल रहे लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की हालत खराब है। ऊपर से जहरीले जीव-जंतुओं का खतरा अलग बना हुआ है।

जनप्रतिनिधि और अधिकारी बनें मूक दर्शक

बुलेट खान उर्फ फिरोज खान, गुलाब जायसवाल, चिंतामणि चौरसिया, मुकेश कुशवाहा, कमलेश, आस मोहम्मद अंसारी, जितेंद्र शर्मा समेत तमाम लोगों ने कई बार अधिकारियों से गुहार लगाई, मगर नतीजा ढाक के तीन पात। लोग अब सड़क पर उतरने की चेतावनी दे रहे हैं।

सरकारी निर्देश हवा में

सरकार का निर्देश है कि जले ट्रांसफार्मर को तुरंत बदला जाए, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। लोगों को मजबूरी में आत्मनिर्भर बनकर बिजली की व्यवस्था खुद करनी पड़ रही है।