लखनऊ (राष्ट्र की परम्परा)। प्रदेश सरकार को परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों के विलय मामले में बड़ी राहत मिली है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इस संबंध में दाखिल की गई दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया है, जिससे स्कूलों के आपसी विलय का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
यह फैसला न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सोमवार को सुनाया। याचिकाओं में राज्य सरकार के 16 जून 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक विद्यालयों को समीपस्थ उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में विलय करने की योजना बनाई गई थी।
याचियों की ओर से कहा गया कि यह आदेश 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करता है। तर्क यह भी दिया गया कि इससे कई छोटे बच्चों को अब अधिक दूर जाना पड़ेगा, जो उनकी शिक्षा में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
vvवहीं, राज्य सरकार ने अपने पक्ष में स्पष्ट किया कि यह कदम पूरी तरह से शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और संसाधनों के कुशल उपयोग के उद्देश्य से उठाया गया है। सरकार की ओर से ऐसे 18 प्राथमिक विद्यालयों का उदाहरण भी पेश किया गया जहां एक भी छात्र नामांकित नहीं था।
सरकार ने बताया कि ऐसे स्कूलों को पास के विद्यालयों में समाहित कर शिक्षकों की उपयोगिता, इन्फ्रास्ट्रक्चर और शिक्षण संसाधनों को समुचित रूप से व्यवस्थित किया जाएगा। इससे शिक्षा व्यवस्था में सुधार आएगा और छात्रों को बेहतर वातावरण मिल सकेगा।
हाईकोर्ट के इस फैसले से स्पष्ट हो गया है कि सरकार को प्राथमिक स्कूलों के आपसी विलय की कार्यवाही को आगे बढ़ाने का अधिकार है। अब बेसिक शिक्षा विभाग इस प्रक्रिया को अधिक तीव्रता से लागू कर सकेगा।
इस निर्णय के बाद अब राज्य सरकार की स्कूल विलय योजना को कानूनी वैधता मिल गई है, जिससे शिक्षा नीति में प्रभावशाली बदलाव की राह खुल सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इससे ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति में कितना व्यावहारिक सुधार आता है।
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