
ग्लोबल साउथ दोहरे मापदंडों का हो रहा है शिकार

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर पूरी दुनियाँ परंतु विशेष रूप से यूरोप व विकसित देशों को ब्रिक्स देशों के अति महत्वपूर्ण व संभाव्य रुतबे का ज़रूर एहसास होगा, क्योंकि यह पहले 7 देशों का परिवार था,जो अभी बढ़कर 11 हो चुके हैं और भविष्य में 30 तक जाने की संभावना है,इन मजबूत देशों को किसी वैश्विक निर्णायक मोड टेबल पर स्थान नहीं दिया गया है,जबकि दुनियाँ को 42 पर्सेंट आबादी से अधिक, जीडीपी में 23 परसेंट, व्यय में 17 परसेंट, वैश्विक विकास, व्यापार व निवेश में बहुत बड़ा योगदान है, वैश्विक गरीबी से लड़ने में महत्वपूर्ण सहयोग व तेल गैस प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर 11 देशों का व्यापार अमेरिकी डॉलर से होता है जो एक मुद्दा बना कि ब्रिक्स देशों को अल्टरनेटिव करेंसी के रूप में लाया जाएगा,जिसपर फरवरी 2025 में ट्रंप ने कहा था कि अगर डॉलर से छेड़छाड़ की गई तो 100 से 500 परसेंट तक टैरिफ लगा दिया जाएगा।

मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र, यह मानता हूं कि इस बार ब्राजील में हो रहे 17 वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन कुछ फ़ीका सा लग रहा है, क्योंकि इसमें रूस के राष्ट्रपति पुतिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग व ईरानी राष्ट्रपति हाजिर नहीं हुए हैं, जो शायद ब्रिक्स के जीवनकाल में पहली बार हो रहा है, कई और नेताओं के न आने के कारण ब्राज़ील और लेटिन अमेरिकी मीडिया रिपोर्टों में रियो डी जेनेरियो में हो रही इस बैठक को कम भागीदारी वाली’ और यहां तक कि ‘खाली’ बताया जा रहा है,ब्राज़ीलमीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़, ब्रिक्स के एक और अहम नए सदस्य मिस्र के राष्ट्रपति भी बैठक में मौजूद नहीं होंगे ब्रिक्स के मुख्य सदस्य देशों में से भारत के पीएम और दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति के साथ नए सदस्य इंडोनेशिया के राष्ट्रपति इस बैठक में व्यक्तिगत रूप से शामिल हुए हैं,हालांकि, ब्राज़ील और अन्य क्षेत्रीय विश्लेषकों का मानना है कि इतने नेताओं के न आने से वामपंथी मेज़बान लूला डि सिल्वा की खुद को अंतरराष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित करने की कोशिश प्रभावित हो सकती है।दरअसल, ब्रिक्स देशों के बीच खुद भी मतभेद हैं, जहां चीन और रूस अमेरिका विरोधी सख्त रुख अपनाते हैं, वहीं भारत और ब्राजील संतुलित रुख के पक्षधर हैं, इस साल सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे ब्राजील के राष्ट्रपति की कोशिश है कि एआई, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहकर सम्मेलन को राजनीतिक विवादों से दूर रखा जाए, ट्रंप की अमेरिका में सत्ता में वापसी के बाद ब्राजील नहीं चाहता कि वह किसी भी तरह के अमेरिकी प्रतिबंधों का निशाना बने।ब्रिक्स नेताओं,नें यह चेतावनी भी दी कि अमेरिकी राष्ट्रपति के “अंधाधुंध” आयात शुल्क से वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचने का खतरा है।अंतिम शिखर सम्मेलन के वक्तव्य के अनुसार, ब्रिक्स नेताओं ने “एकतरफा टैरिफ और गैर-टैरिफ उपायों के बढ़ने पर गंभीर चिंता व्यक्त की,”तथा चेतावनी दी कि ये अवैध और मनमाने हैं।चूँकि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में पुतिन व शी जिनपिंग की गैर मौजूदगी व भारतीय पीएम का आगाज़, ग्लोबल साउथ दोहरे मापदंड का हो रहा है शिकार, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे ग्लोबल साउथ को वैश्विक संस्थाओं की निर्णय टेबल पर प्रतिनिधित्व नहीं देना जैसे मोबाइल में सिम तो है, पर नेटवर्क नहीं सटीक कटाक्ष है।
साथियों बातअगर हम एक ऐसे ब्रिक्स की परिकल्पना करने की करें जो कुछ परिणाम देगा,तो उनमें से, जलवायु परिवर्तन वित्तपोषण,कृत्रिम बुद्धिमत्ता के वित्तपोषण और विनियमन पर एक समर्पित घोषणा, और सामाजिक रूप से निर्धारित बीमारियों पर साझेदारी,वे बीमारियाँ जिन्हें हम गरीबी की स्थिति से जोड़ते हैं। पहले सत्र के अलावा, रियो ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के सभी सत्र भागीदार देशों और आमंत्रित देशों के लिए खुले रहेंगे। यह मानवता की बड़ी चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए मंच में पारदर्शिता और समावेशिता का एक प्रयास है। एक स्पष्ट संकेत यह है कि 30 से अधिक देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने में रुचि व्यक्त की है। यह बहुत कुछ कहता है।अमेरिकी राष्ट्रपति ने धमकी दी है कि अगर ब्रिक्स डी-डॉलराइजेशन की ओर बढ़ता है तो वे उसके खिलाफ 100-500 पेर्सेंट टैरिफ लगा देंगे। ऐसा कोई प्रस्ताव या चर्चा सम्मेलन में नहीं होने की संभावना है।
साथियों बात अगर हम ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 2025 मेंरविवार 6 जुलाई 2025 को देर शाम भारतीय पीएम के संबोधन की करें तो,उन्होंने कहा, ‘ग्लोबल साउथ अक्सर दोहरे मानदंडों का शिकार रहा है। चाहे विकास की बात हो, संसाधनों के वितरण की बात हो या सुरक्षा से जुड़े मुद्दों की, ग्लोबल साउथ के हितों को प्राथमिकता नहीं दी गई है। जलवायु वित्त, सतत विकास और प्रौद्योगिकी पहुंच जैसे मुद्दों पर ग्लोबल साउथ को अक्सर सिर्फ औपचारिक इशारे ही मिले हैं’।आगे कहा ’20वीं सदी में बनी वैश्विक संस्थाएं 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने में असमर्थ हैं। चाहे दुनियाँ के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे संघर्ष हों, महामारी हो, आर्थिक संकट हो या साइबरस्पेस में नई उभरती चुनौतियां हों, इन संस्थाओं के पास कोई समाधान नहीं है’।आगे कहा ‘एआई के युग में, जहां हर हफ्ते तकनीक अपडेट होती है, यह स्वीकार्य नहीं है कि कोई वैश्विक संस्थान 80 साल में एक बार भी अपडेट न हो। 20वीं सदी के टाइपराइटर 21वीं सदी के सॉफ्टवेयर को नहीं चला सकते’। 20वीं सदी में गठित वैश्विक संस्थाओं में मानवता के दो तिहाई हिस्से को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देने वाले देशों को निर्णय लेने वाली मेज पर जगह नहीं दी गई है। यह सिर्फ प्रतिनिधित्व का सवाल नहीं है, बल्कि विश्वसनीयता और प्रभावशीलता का भी सवाल है। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए एआई का भी जिक्र किया।अंत में एक बड़ा संदेश देते हुए कहा कि आज दुनिया को एक नई, बहुध्रुवीय और समावेशी विश्व व्यवस्था की जरूरत है। इसकी शुरुआत वैश्विक संस्थाओं में व्यापक सुधारों से करनी होगी। सुधार केवल प्रतीकात्मक नहीं होने चाहिए, बल्कि उनका वास्तविक प्रभाव भी दिखना चाहिए। ग्लोबल साउथ को जलवायु वित्त, सतत विकास और प्रौद्योगिकी पहुंच पर सिर्फ दिखावटी चीजें मिली हैं।विकास, संसाधनों के वितरण या सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर ग्लोबल साउथ के साथ दोहरा मापदंड अपनाया गया है।”ब्रिक्स का विस्तार और नए दोस्तों का जुड़ना इस बात का प्रमाण है कि ब्रिक्स एक ऐसा संगठन है जो समय के अनुसार खुद को बदल सकता है। अब, हमें यूएन सुरक्षा परिषद, डब्लूएचओ और बहुपक्षीय विकास बैंकों जैसे संस्थानों में सुधार के लिए भी ऐसी ही इच्छाशक्ति दिखानी होगी। ब्रिक्स ने खुद को बदला है और नए देशों को शामिल किया है। अब हमें यूएन सिक्योरिटी कौंसिल, डब्लूटीओ और मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंक्स जैसे संगठनों में भी बदलाव करने होंगे। हमें इन संगठनों को और बेहतर बनाने के लिए काम करना होगा।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विशेषण करें तो हम पाएंगे किब्रिक्स शिखर सम्मेलन 6-7 जुलाई 2025- पुतिन व शी ज़िनपिंग की गैर मौजूदगी- भारतीय पीएम का आगाज़ ग्लोबल साउथ दोहरे मापदंडों का हो रहा है शिकारवैश्विक संस्थाओं क़ा एआई युग में 80 साल में एक बार भी संशोधित नहीं होना, 20वीं सदी के टाईपराइटर क़ाम बनाम 21वीं सदी के सॉफ्टवेयर ग्लोबल साउथ को वैश्विक संस्थाओं की निर्णय टेबल पर प्रतिनिधित्व नहीं देना, जैसे मोबाइल में सिम तो है पर नेटवर्क नहीं, सटीक कटाक्ष हैँ।
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