मीरपुर में अशरे मोहर्रम की मजलिस के छठे दिन दिया गया ऐतिहासिक पैग़ाम

सादुल्लानगर/बलरामपुर (राष्ट्र की परम्परा)। मोहर्रम कोई पर्व नहीं बल्कि इंसानियत की हिफाज़त, ज़ुल्म के खिलाफ जंग और सच्चाई की राह में दी गई सबसे बड़ी कुर्बानी की याद है। यह केवल एक तिथि या धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि आतंकवाद, अन्याय और दमनकारी ताक़तों के खिलाफ एक ज़िंदा तहरीक (आंदोलन) है। उक्त बातें लखनऊ से आए प्रख्यात धर्मगुरु मौलाना शादाब हुसैन ने मीरपुर में चल रही अशरे मोहर्रम की मजलिस के छठे दिन कही।
मौलाना शादाब हुसैन ने कहा कि करबला की जंग इंसानियत और इस्लामी मूल्यों की हिफाजत के लिए लड़ी गई थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने यजीद जैसे जालिम और जब्बार हाकिम की बैअत को ठुकराकर ये साबित किया कि संख्या में कम होने के बावजूद अगर मकसद हक और सच्चाई पर हो, तो दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकतें भी हार जाती हैं। उन्होंने कहा, “दुनिया अगर आतंकवाद और दहशतगर्दी से निजात चाहती है तो उसे करबला से सबक लेना होगा और इमाम हुसैन की राह पर चलना होगा।”
उन्होंने करबला के रूहानी और इंसानी संदेश को विस्तार से बताते हुए कहा कि आज भी अगर कोई मजलूम अन्याय के खिलाफ आवाज उठाता है, तो उसमें इमाम हुसैन की रूहानी तालीम और जज्बा झलकता है।
मीरपुर में अजादारी का दौर
मीरपुर गांव में अंजुमन कमर बनी हाशिम और अंजुमन अबुल फज़लील अब्बास के संयुक्त तत्वावधान में 1 से 10 मोहर्रम तक लगातार मजलिसों का आयोजन किया जा रहा है। मजलिसों में इमाम हुसैन और उनके 72 वफादार साथियों की शहादत की याद में शोक सभाएं, नौहा, मातम और मर्सिये प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
ग्राम प्रधान आरज़ू काज़मी ने बताया कि 7 मोहर्रम से गांव में ताज़ियादारी और जुलूसों का सिलसिला शुरू हो जाएगा। अजादारों के द्वारा गांव की गलियों में मातमी जुलूस निकाले जाएंगे। 9 मोहर्रम की रात भर मजलिस और मातम का आयोजन होगा, जिसमें बड़ी संख्या में अकीदतमंद शामिल होंगे।
विशेष रूप से 9 मोहर्रम की शब में दरगाह हज़रत अब्बास में पारंपरिक ‘आग का मातम’ किया जाएगा जो पूरे क्षेत्र में विशेष आस्था का केंद्र होता है। 10 मोहर्रम को दरगाह हज़रत अब्बास से पारंपरिक ताजिया जुलूस निकाला जाएगा जो मौजे से होते हुए करबला पहुंचेगा, जहां ताजिया को सिपुर्द-ए-खाक (दफन) किया जाएगा। इसके बाद मगरिब की नमाज के बाद मजलिस-ए-शामे ग़रीबां का आयोजन होगा।
पूरा मीरपुर रंगा अजादारी के रंग में
मोहर्रम के अवसर पर मीरपुर गांव पूरी तरह से अजादारी के रंग में डूबा हुआ है। हर गली, हर घर से इमाम हुसैन की याद में नौहे और मातम की सदाएं गूंज रही हैं। गांव में गम और इबादत का माहौल है।
सुरक्षा व्यवस्था सख्त
भीड़ और आयोजन को देखते हुए स्थानीय प्रशासन भी पूरी तरह सतर्क है। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की निगरानी में कार्यक्रम शांतिपूर्वक संपन्न हो रहे हैं। हर जुलूस और मजलिस में प्रशासन की मौजूदगी सुनिश्चित की जा रही है ताकि कोई अप्रिय घटना न हो।
करबला की यह याद दिलाती है कि हक और इंसाफ की राह में दी गई कुर्बानी कभी व्यर्थ नहीं जाती। इमाम हुसैन का यह पैगाम आज भी उतना ही जीवित और प्रेरक है, जितना 1400 साल पहले था।
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