
(ओ.पी. श्रीवास्तव की रिपोर्ट)
नोएडा(राष्ट्र की परम्परा) देश में तेजी से बढ़ रहे साइबर अपराध अब सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं तक पहुंच चुके हैं। ताजा मामला नोएडा सेक्टर-47 का है, जहां सुप्रीम कोर्ट की एक महिला अधिवक्ता से साइबर अपराधियों ने खुद को जांच एजेंसी का अधिकारी बताकर डिजिटल अरेस्ट के नाम पर 3 करोड़ 29 लाख रुपये की ठगी कर ली।
कैसे रची गई साइबर ठगी की साजिश
जानकारी के अनुसार, पीड़िता अधिवक्ता को 10 जून को एक कॉल आया जिसमें स्वयं को जांच एजेंसी का अधिकारी बताने वाले व्यक्ति ने दावा किया कि उनके आधार कार्ड और बैंक खाते का इस्तेमाल हथियारों की तस्करी और ड्रग्स के लेन-देन में हुआ है। इतना ही नहीं, अधिवक्ता को यह भी बताया गया कि 25 अप्रैल को इस मामले में उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है।
वीडियो कॉल पर पुलिस वर्दी और ऑफिस का दृश्य
डर और भ्रम की स्थिति में अधिवक्ता को व्हाट्सएप वीडियो कॉल पर एक पुलिस अधिकारी से मिलवाया गया, जो वर्दी में था और पीछे पुलिस ऑफिस जैसा बैकग्राउंड दिखाया गया। इस चालाकी से अपराधियों ने पीड़िता का विश्वास जीत लिया।
डिजिटल अरेस्ट के नाम पर करोड़ों की ठगी
अपराधियों ने खुद को सरकारी अधिकारी बताकर अधिवक्ता को डराया और फिर “डिजिटल अरेस्ट” की कहानी गढ़ते हुए बैंक डिटेल्स हासिल कर ली। इसके बाद अलग-अलग किश्तों में उनसे कुल 3 करोड़ 29 लाख रुपये ट्रांसफर करवा लिए।
ठगों की पहचान और पुलिस कार्रवाई
घटना के बाद अधिवक्ता ने नोएडा के सेक्टर-49 थाने में तहरीर दी। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए शिवप्रसाद, प्रदीप सावंत और प्रवीण सूद नामक तीन साइबर अपराधियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है और मामले की जांच शुरू कर दी गई है।
साइबर सुरक्षा पर उठते सवाल
इस घटना ने एक बार फिर साइबर सुरक्षा की कमजोरियों को उजागर कर दिया है। आम लोगों से लेकर उच्च पदस्थ वकीलों तक कोई भी इन अपराधियों की पहुंच से बाहर नहीं है। स्थानीय नागरिकों और विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को ऐसे मामलों पर रोक लगाने के लिए सख्त साइबर कानून, अत्याधुनिक तकनीक और तेज़ कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए। कुछ लोगों ने तो ऐसे मामलों में दोषियों को फांसी तक की सज़ा देने की मांग की है।
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