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सुघ्घर बगरे बसंत हे


गीत म, संगीत म, मनखे के पिरीत म,
मन म, जीवन म, आनंद-ही-आनंद हे।
खेत म, खार म, रूख-राई के डार म,
बाग म, राज म, सुघ्घर बगरे बसंत हे।।

इंद्रधनुषी जम्मों फूल के गुरतुर रस ल,
तितली, भौंरा अउ चिरई मन ह चूहके।
सुआ अउ मैना ल मया करत देख-देख,
आमा पेड़ म कोयली कुहू-कुहू कुहके।।

पिंयर रंग के सरसों, राहेर फूले हवय,
सादा के मोंगरा, मंदार अउ कुसियार।
बोइर, बिही, अरम पपई के फर गदरागे,
कउंवा भगनहा पुतला लगे हे रखवार‌।।

धान के कलगी खोंचे, माथा गहूं पटिया,
गला म चंदैनी-गोंदा के सुर्रा हे मनोहारी।
जवा फूल के नांगमोरी, बंभरी बीजा सांटी,
भुईयां महतारी सजे-धजे लागे फुलवारी।

कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़

Editor CP pandey

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