July 7, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की, नहीं माना परिसर को ‘विवादित संरचना’

लखनऊ/मथुरा, (राष्ट्र की परम्परा डेस्क): श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद भूमि विवाद मामले में एक अहम मोड़ तब आया जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उक्त परिसर को ‘विवादित संरचना’ घोषित करने की मांग की गई थी। अदालत ने इस याचिका को तथ्यों और कानूनी आधार की कमी के चलते अस्वीकार कर दिया।

याचिकाकर्ता का दावा था कि मथुरा में जहां वर्तमान में शाही ईदगाह मस्जिद स्थित है, वह मूलतः भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान है और वहां एक प्राचीन हिंदू मंदिर हुआ करता था जिसे मुगल काल में ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण किया गया। याचिका में यह भी कहा गया था कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह ट्रस्ट के बीच हुआ समझौता अवैध था और उस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।

हालांकि, न्यायालय ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता के पास ऐसा कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि ईदगाह का निर्माण पूरी तरह मंदिर को तोड़कर किया गया था, और इसीलिए परिसर को ‘विवादित संरचना’ घोषित करने का कोई पर्याप्त आधार नहीं है।

न्यायालय की टिप्पणी
अदालत ने स्पष्ट किया कि “कोई भी ऐतिहासिक या पुरातात्विक साक्ष्य ऐसा नहीं दर्शाते जो इस स्थल को वर्तमान कानूनी रूप से ‘विवादित संरचना’ की श्रेणी में लाएं।” साथ ही न्यायालय ने 1991 के धार्मिक स्थलों की स्थिति अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप को नहीं बदला जा सकता।

पृष्ठभूमि
यह मामला बीते कई वर्षों से कानूनी प्रक्रिया से गुजर रहा है। याचिकाकर्ताओं की ओर से लगातार यह मांग की जाती रही है कि मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के वास्तविक स्थल को मस्जिद से मुक्त कराया जाए। इस विवाद ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले के निर्णय के बाद धार्मिक एवं राजनीतिक रूप से नई गति पकड़ी थी।

आगे की राह
हालांकि यह याचिका खारिज हो गई है, लेकिन श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति से जुड़े अन्य कई मामले अभी न्यायालय में लंबित हैं। संबंधित पक्षों द्वारा उच्चतम न्यायालय तक इस विषय को ले जाने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

समाप्ति
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस फैसले को एक संतुलित और कानून आधारित निर्णय माना जा रहा है, जो कि ऐतिहासिक स्थलों से जुड़े विवादों में न्यायिक दृष्टिकोण की गंभीरता को दर्शाता है। यह निर्णय आने वाले समय में ऐसे अन्य मामलों में मिसाल के रूप में भी देखा जा सकता है।