
प्रयागराज (राष्ट्र की परम्परा)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ता से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई पत्नी बिना उचित कारण के अपने पति को छोड़कर अलग रहती है, तो वह भरण-पोषण (गुजारा भत्ता) की हकदार नहीं मानी जाएगी। यह फैसला जस्टिस सुभाष चंद्र शर्मा की एकल पीठ ने सुनाया है।
कोर्ट ने मेरठ की फैमिली कोर्ट द्वारा 17 फरवरी 2025 को दिए गए आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि केवल अलग रहना ही गुजारा भत्ता पाने का आधार नहीं हो सकता, जब तक कि पत्नी यह सिद्ध न कर दे कि उसके अलग रहने के पीछे ठोस और न्यायसंगत कारण हैं।
हाईकोर्ट में यह मामला एक व्यक्ति द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से पहुंचा था। याची ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें पत्नी को भरण-पोषण की राशि देने का निर्देश दिया गया था। याची का कहना था कि उसकी पत्नी बिना किसी वैध कारण के पिछले कुछ वर्षों से उसे छोड़कर मायके में रह रही है और उसने वैवाहिक संबंधों को पुनः स्थापित करने के उसके सभी प्रयासों को अनदेखा कर दिया।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कानून महिला को संरक्षण देता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वह उसका अनुचित लाभ उठाए। अगर पत्नी स्वेच्छा से पति के साथ रहने से इंकार करती है और इसके पीछे कोई ठोस या वैधानिक कारण नहीं है, तो वह भरण-पोषण की हकदार नहीं हो सकती।
फैसले का असर:
यह निर्णय भविष्य में उन मामलों के लिए मिसाल बन सकता है, जहां पति-पत्नी के बीच अलगाव की स्थिति हो और पत्नी बिना उचित वजह के अलग रह रही हो। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पति की जिम्मेदारी तभी बनती है जब पत्नी असहाय हो, और उसका पति से अलग रहने का कारण जायज हो।
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