
नई दिल्ली।(राष्ट्र की परम्परा डेस्क) अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर टैरिफ लगाने और चेतावनी देने के बावजूद, भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद बंद नहीं की है। बल्कि अगस्त 2025 में भारत ने जुलाई की तुलना में अधिक मात्रा में रूसी तेल आयात किया। यह कदम भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक रणनीति का स्पष्ट संकेत है, जो अमेरिकी दबाव के बावजूद अपनी नीतियों पर कायम है।
भारत के साथ-साथ चीन भी रूसी तेल का बड़ा खरीदार बना हुआ है। हालाँकि चीन ने जुलाई के मुकाबले अगस्त में कुछ कम तेल खरीदा, लेकिन यह कमी इतनी बड़ी नहीं थी कि रूस को कोई बड़ा झटका लगे।
ड्रोन हमलों से हिला रूस का तेल उद्योग
अगस्त 2025 में यूक्रेन ने रूस पर अब तक का सबसे बड़ा ड्रोन हमला किया, जिसने रूस की तेल रिफाइनिंग क्षमता को बुरी तरह प्रभावित किया। रिपोर्टों के मुताबिक, इन हमलों से रूस की लगभग 20% रिफाइनिंग क्षमता ठप हो गई, यानी करीब 1.1 मिलियन बैरल प्रति दिन (बीपीडी) उत्पादन बाधित हुआ।
सिज़रान रिफ़ाइनरी, क्रास्नोडार संयंत्र, द्रुज़्बा पाइपलाइन और उस्त-लुगा टर्मिनल जैसे अहम ढाँचों को नुकसान पहुँचा।
भारत के लिए अवसर
रूसी रिफाइनरियों पर हमलों और मध्य पूर्वी तेल की ऊँची कीमतों के बीच, भारत ने इस स्थिति को अवसर में बदल दिया।
रूसी यूराल क्रूड ब्रेंट की तुलना में 5-6 डॉलर प्रति बैरल सस्ता मिल रहा है। यह अंतर भारतीय रिफाइनरियों के लिए लाभप्रद है, क्योंकि मामूली मूल्य अंतर भी मुनाफ़े पर बड़ा असर डालता है।
रूस का जवाब
हमलों से घरेलू ईंधन संकट झेल रहे रूस ने अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल के निर्यात में 2,00,000 बैरल प्रतिदिन की वृद्धि की है। हालांकि इससे रूस ने अल्पकालिक राहत तो पाई, लेकिन घरेलू ईंधन आपूर्ति और ज़्यादा प्रभावित हो गई।
निष्कर्ष
अमेरिका के टैरिफ और यूक्रेन युद्ध की चुनौतियों के बीच, भारत और चीन जैसे देशों की रूसी तेल पर निर्भरता कम नहीं हो रही है। भारत का यह कदम साफ़ करता है कि वह अपनी ऊर्जा ज़रूरतों और आर्थिक हितों को प्राथमिकता देता रहेगा, चाहे वैश्विक दबाव कितना भी क्यों न हो।