(राष्ट्र की परम्परा)
देश में बीते कुछ वर्षों के दौरान शासन-प्रशासन को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए डिजिटल इंडिया, ई-गवर्नेंस, सिंगल विंडो सिस्टम और ऑनलाइन सेवाओं की शुरुआत की गई। सरकार की ओर से बार-बार यह दावा किया जाता है कि अब भ्रष्टाचार पर लगाम लग चुकी है और जनता को बिना किसी बाधा के सेवाएँ मिल रही हैं। लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग तस्वीर पेश करती है। जब आम नागरिक किसी सरकारी दफ्तर के दरवाज़े पर पहुंचता है, तो उसे आज भी वही पुरानी समस्याओं का सामना करना पड़ता है—फाइलों का अटकना, अनावश्यक देरी और “सिस्टम” के नाम पर की जाने वाली वसूली।
डिजिटल प्लेटफॉर्म ही अब अधिकांश योजनाओं और सेवाओं का आधार बन चुके हैं। आवेदन, दस्तावेज़ अपलोड, स्टेटस ट्रैकिंग जैसी सुविधाएँ ऑनलाइन हो चुकी हैं। परंतु समस्या यह है कि ऑनलाइन प्रक्रिया के बाद भी निस्तारण ऑफलाइन ही होता है, जहां मानव हस्तक्षेप बना रहता है। यही वह स्थान है जहां भ्रष्टाचार अपनी जड़ें गहराई से जमाए बैठा है। पोर्टल आधुनिक हैं, पर कई जगहों पर कर्मचारियों की मानसिकता पुराने ढर्रे पर ही टिकी हुई है। बिना “तेल” दिए काम आगे नहीं बढ़ने की सोच आज भी जीवित है।
सरकार समयबद्ध सेवा की गारंटी तो देती है, लेकिन हकीकत में फाइलें महीनों तक धूल फांकती रहती हैं। राशन कार्ड में संशोधन हो, जमीन का दाखिल-खारिज, जाति या निवास प्रमाण पत्र बनवाना हो या फिर बिजली-पानी कनेक्शन लेना हो—हर जगह आम आदमी को अनकहे दबावों और इशारों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में जनता के मन में यह सवाल उठता है कि अगर यह सब ऑनलाइन हो चुका है, तो फिर भ्रष्टाचार पर लगाम क्यों नहीं लग पा रही?
समस्या की जड़ें केवल तकनीक की कमी नहीं, बल्कि व्यवस्था में जवाबदेही के अभाव से जुड़ी हैं। कई बार शिकायतें दर्ज तो हो जाती हैं, लेकिन उन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। दोषी अधिकारियों या कर्मचारियों को सजा न मिलने से उनका हौसला और बढ़ जाता है। जब दंड का भय खत्म हो जाता है, तब भ्रष्टाचार धीरे-धीरे सिस्टम का हिस्सा बन जाता है और ईमानदारी हाशिए पर चली जाती है।
राजनीतिक मंचों से लेकर सरकारी दावों तक, हर जगह सुधार की बातें होती हैं। नीति बनती है, दिशा-निर्देश जारी होते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर बदलाव की रफ्तार बेहद धीमी है। यही दूरी जनता के विश्वास को कमजोर कर रही है। लोग मानने लगे हैं कि भ्रष्टाचार पर लगाम सिर्फ भाषणों और विज्ञापनों तक ही सीमित है, हकीकत में नहीं।
यदि देश को सच में भ्रष्टाचार मुक्त बनाना है, तो केवल तकनीकी बदलाव से काम नहीं चलेगा। जरूरी है कि हर स्तर पर सख्त निगरानी हो, पारदर्शिता के साथ जवाबदेही भी तय हो और दोषियों पर बिना किसी दबाव के तत्काल कार्रवाई की जाए। जब तक ईमानदारी को मजबूरी नहीं, बल्कि सिस्टम की पहचान नहीं बनाया जाएगा, तब तक भ्रष्टाचार की यह पुरानी बीमारी यूँ ही फैलती रहेगी।
अब समय आ गया है कि सुधार सिर्फ फाइलों और वेबसाइटों तक सीमित न रहें, बल्कि उनका असर आम नागरिक के जीवन में साफ दिखाई दे। तभी भ्रष्टाचार पर लगाम एक नारा नहीं, बल्कि सच्चाई बन पाएगी।
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