शादी का बोझ या सामाजिक शान? दिखावे की दौड़ में परिवार क्यों हो रहे कर्ज़ के गुलाम

सोमनाथ मिश्रा की रिपोर्ट | राष्ट्र की परम्परा

भारत में विवाह को लेकर बदलते सामाजिक परिवेश ने एक नई चिंता को जन्म दिया है—शादी का बोझ। आधुनिकता और डिजिटल युग के बीच जहाँ रिश्तों को सरल होना चाहिए था, वहीं शादी का खर्च पहले से कहीं अधिक बढ़कर परिवारों के लिए भारी आर्थिक दबाव बनता जा रहा है। परंपराओं, प्रतिष्ठा और दिखावे की प्रतिस्पर्धा ने विवाह जैसे पवित्र संस्कार को एक महँगे सामाजिक आयोजन में तब्दील कर दिया है।1. बदलता जमाना, लेकिन सोच वही—दिखावे की संस्कृति में बढ़ता शादी का बोझसमाज आधुनिक जरूर हुआ है, लेकिन विवाह के नाम पर अनावश्यक खर्च करने की प्रवृत्ति कम होने के बजाय और अधिक तेज़ हो चुकी है। “दहेज” का पारंपरिक रूप अब स्टेटस, इमेज और सोशल प्रेशर के नए रूप में सामने आ रहा है।आज शादियों में खर्च सिर्फ रस्मों पर नहीं, बल्कि उन चीज़ों पर होता है जो “लोग क्या कहेंगे” मानसिकता को पोषित करती हैं।डेस्टिनेशन वेडिंग,ड्रोन व 4K शूट,लक्ज़री बैंक्वेटथीम-बेस्ड डेकोरेशन,प्री-वेडिंग फिल्मये सब मिलकर विवाह को एक भव्य शो में बदल रहे हैं। नतीजतन परिवार अपनी क्षमता से कहीं अधिक खर्च करने को मजबूर हो रहे हैं।2. दहेज का आधुनिक रूप—गिफ्ट के नाम पर बढ़ता आर्थिक दबावआज दहेज सीधे नहीं मांगा जाता, बल्कि “गिफ्ट”, “रिवाज”, “सम्मान” और “परंपरा” का नाम देकर इसे वैधता प्रदान कर दी जाती है।परिवार निम्नलिखित चीज़ों को “जरूरी” मानने लगे हैं—ब्रांडेड कार,महंगे इलेक्ट्रॉनिक्स,सोने के सेट,लक्ज़री फर्नीचर,नकद राशियह आधुनिक दहेज कई परिवारों को कर्ज़ के जाल में धकेल रहा है। खासकर मध्यम और निम्न आय वर्ग पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।3. सोशल मीडिया का प्रभाव—शादी नहीं, ‘इवेंट’ बन चुकी हैआज विवाह दो परिवारों का मिलन कम और सोशल मीडिया पर इमेज बनाने का प्रोजेक्ट ज्यादा हो गया है।इंस्टाग्राम रील, वायरल वीडियो, और थीम फोटोशूट की होड़ ने विवाह की लागत को कई गुना बढ़ा दिया है।इसका परिणाम—जमा पूंजी खत्म,परिवारों में तनाव,जमीन/गहने बेचने की मजबूरी,शादी के बाद भी बरसों तक EMI का बोझयही कारण है कि कई परिवार बेटियों के विवाह को “आर्थिक आपदा” मानने लगे हैं।4. समाधान: सामाजिक सोच बदले बिना शादी का बोझ नहीं हटेगायदि समाज वास्तविक बदलाव चाहता है, तो जरूरी है कि—दिखावे और फिजूल खर्च को खुलकर ‘ना’ कहा जाए।विवाह को सरल, पारंपरिक और सादगीपूर्ण बनाया जाए।दहेज मांगने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए।बेटियों को अधिकार और सम्मान दिया जाए, बोझ नहीं माना जाए।जब तक परिवार “लोग क्या कहेंगे” से ऊपर उठकर “हम सही क्या कर रहे हैं” पर ध्यान नहीं देंगे, तब तक विवाह का बोझ बढ़ता ही रहेगा।

rkpnews@somnath

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