नेपाल देश के पहाड़ों से डोली में चढ़कर यहां आई थीं टिकुलहियां माई

पुराना तलवार व डोली का खंभा आज भी जमींदार के घर संरक्षित है

डॉ सतीश पाण्डेय व नीरज मिश्र की रिपोर्ट

महराजगंज ( राष्ट्र की परम्परा)।निचलौल नगर पंचायत से सटे उत्तर ग्राम टिकुलहियां में प्रसिद्ध देवी माता टिकुलहियां का मंदिर लोगों की अटूट आस्था का केंद्र है। वर्षों से पूजित माता के दरबार में दूर दूर से लोग मत्था टेक यहां मन्नतें मांगने आते हैं। मां भक्तों की मुरादें पूरी करती हैं।
निचलौल के तत्कालीन जमींदार महेश्वरी दत्त पाण्डेय ने दशको पूर्व देवी का आह्वान कर नेपाल के पहाड़ियों से माता को पिंडी स्वरूप में यहां लाकर स्थापित किया था। तब से शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा ग्राम टिकुलहियां में टिकुलहियां माई के नाम से पूजी जा रही हैं।
लोगों के अनुसार जमींदार की इच्छा देवी के अंश पिंड को पूजन अर्चन के लिए नेपाल के पहाड़ों से अपने घर ले जाने की थी। जमींदार परिवार के वंशज ओम प्रकाश पाण्डेय कहते हैं कि पिंड रूप में माता को एक विशेष डोली में लाया जा रहा था। नेपाल के पहाड़ियों से चलने के क्रम में एक गांव का सीवान पार करने पर एक बकरे की बलि दी जानी थी। लेकिन निचलौल नगर सटे ग्राम टिकुलहियां आने पर बलि के बकरे खत्म हो गए। बकरे के इंतजाम में काफी समय लग गया।
इधर ज्यादा समय तक माता की डोली उठाए लोग थक चुके थे, जिसके चलते कहारों ने डोली नीचे रख दी। बकरा लाकर बलि देने के बाद माता की डोली को उठाने का काफी प्रयास किया गया लेकिन डोली नहीं उठ पाई। ऐसे में जमींदार ने माता की पिंडी के समीप के एक वृक्ष के नीचे स्थापित कर दिया। वे जीवन भर माता की पूजा अर्चना टिकुलहियां आकर करते रहे। जमींदार परिवार के लोग आज भी टिकुलहियां माता की पूजा अर्चना करते हैं।
मंदिर के मुख्य सेवादार अजय कुमार जायसवाल ने बताया कि मंदिर में नव देवी की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा एवं मंदिर के जीर्णोधार के उपलक्ष्य में हर
वर्ष चैत्र नवरात्र के अवसर पर तीन दिवसीय टिकुलहियां मंदिर महोत्सव का आयोजन होता है।
आज भी बलि देने में प्रयुक्त पुराना तलवार व डोली का खंभा जमींदार परिवार के घर सुरक्षित है। आज भी यहां बलि की प्रथा है। नवरात्र में नवमी के दिन मनौती मानने वाले इस स्थान पर बकरे की बलि देते हैं।जंगल से निकलकर एक शेर आता था। टिकुलहियां गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले इस स्थान पर पूरब के जंगल से निकलकर एक शेर आता था। शेर के आने व गर्जना सुनने की गवाही कई बुजुर्गों ने पहले दिया है। आगे चलकर इस स्थान पर तत्कालीन पुजारी रामसुभग व विजय केडिया आदि ने मिलकर एक छोटा सा मंदिर बनवाया था। प्राचीन मंदिर के स्थान पर ही अब मंदिर कमेटी ने एक भव्य विशाल मंदिर का निर्माण कराया है।

rkpnews@desk

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