कौन सच्चा कौन झूठा, क्या
लिखकर बतला पाऊँगा ?
ख्याल आता है कभी, क्या
बहती गंगा में हाथ धो पाऊँगा?
परंतु जब ख़याल आया कि
इसमें भी बड़ी राजनीति है,
तो क्या सच लिख पाऊँगा !
भाई यहाँ चुप रहने की रीति है!
फिर एक ख़याल यह आता है,
कि क्या उन जैसा न होकर,
तुम खुद उन जैसा बन सकोगे,
लिखते जो सदा निडर होकर !
क्या यू पी, बिहारी, मराठी की
कहानी को फिर दोहरा पाओगे,
कौन पटना का, कौन मुम्बई
का है, क्या बतला पाओगे!
क्या धर्म व जातिवाद पर
कुछ रोशनी डाल सकोगे !
संघ, शिव सेना या सिंह वाहिनी
सेना किसकी हैं बता सकोगे !
आलंकारिक भाषा को कविता
में गूँथ गूँथ कर बताना पड़ेगा,
मकसद किसका है और किस
को किस से मुक्त होना पड़ेगा!
लोगों को चिल्ला चिल्ला कर
हो सकता है डाँटना पड़ेगा,
मीडिया में कौन सच्चा, कौन
झूठा, यह भी बताना पड़ेगा।
क्या पुलिस, सीबीआई व
ईडी का पर्दा उठा सकोगे?
या यूँ ही गोलमोल लिख
कर ही खिसक जाओगे!
सच को झूठ और झूठ को सच
बताने का माद्दा है क्या तुममें?
नहीं ना, इसलिए तुम्हारा चुप
रहना ही अच्छा है इस सब में।
बस यही सोच कर चुप रहना,
होगा कि जो हो रहा है होने दो,
वरना देश द्रोह का आरोप
क्या तुम भी झेल पाओगे ?
उड़ने दो मखौल लोकतंत्र का,
और बिक जाने दो नवरत्नों को,
नहीं बिकने देना चाहते हो, तो
आदित्य, क्या इन्हें बचा पाओगे!
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