दुनियाँ में विज्ञान पर सबसे बड़ी चुनौती,लाइलाज कैंसर को मात मिलेगी,“इंटरोमिक्स” कैंसर वैक्सीन शीघ्र बाजार में- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया – विश्व स्वास्थ्य जगत में कैंसर एक ऐसा सार्वभौमिक संकट रहा है जिसने अनेक बार वैज्ञानिकों को अचम्भित किया है। बढ़ते कैंसर के मामलों और उसके आर्थिक व सामाजिक प्रभावों की चुनौतियों ने एक से अधिक बार चिकित्सा अनुसंधान को अग्रसर किया है।कैंसर आज के समय में इंसानों को तेजी से अपनी चपेट में ले रहा है, पहले यह बड़े उम्र के लोगों में ज्यादा होता था,लेकिन आज कम उम्र के लोग भी इसकी चपेट में हैं, मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो स्त्री से लेकर पुरुष तक हर कोई कैंसर से परेशान है,इसके अलावा इसके इलाज में काफी खर्च आता है जो आम इंसान कभी-कभी उतना दे नहीं पाता और इसके चलते हर साल बड़ी संख्या में इससे लोगों की मौत हो जाती है, अब इसी बीमारी को काउंटर करने के लिए रूस ने वैक्सीन का निर्माण किया है,यह वैक्सीन अगर इंसानों पर पूरी तरह सफल होती है, तो यह मानव सभ्यता के सबसे महान खोजों में से एक होने वाली है, 8 सितंबर 25 को देर रात्रि आई जानकारी के अनुसार,अभी तक एम- आरएनए बेस्ड वैक्सीन ‘एंटरोमिक्स’ ने प्री-क्लिनिकल ट्रायल्स में 100 प्रतिशत तक प्रभावशील और सुरक्षित दिखी है, इस वैक्सीन को रूस के नेशनल मेडिकल रिसर्च रेडियोलॉजी सेंटर और रूस के ही एकेडमी ऑफ साइंस के एंगेलहार्ट इंस्टीट्यूट ऑफ मॉलिक्यूलर बायोलॉजी ने साथ मिलकर तैयार किया है।समाचारों में अक्सर”नई वैक्सीन”,”नया इलाज” “क्रांतिकारी शोध” जैसी बातें सामने आती हैं परंतु सच्चाई अक्सर संतोषजनक नहीं होती। इसलिए रूस की वैज्ञानिक टीम द्वारा प्रकाशित हालिया रिपोर्ट, जिसमें दावा है कि “इंटरोमिक्स” नामक एम-आरएनए कैंसर वैक्सीन ग्लोबली प्रीक्लिनिकल से लेकर क्लिनिकल ट्रायल्स में 100 पर्सेंट सफल रही है,वास्तव में एक व्यापक और सावधानी पूर्वक मूल्यांकन मांगती है।चूँकि एक नई उम्मीद “इंटरोमिक्स” कैंसर वैक्सीन:- कैंसर को वैक्सीन से हराने की पहल, वैश्विक शोध जगत में इस खोज को एक संभावित गेम-चेंजर माना जा रहा है।इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्धजानकारी के सहयोग से इसआर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,कैंसर के इलाज में रूस की क्रांतिकारी खोज-“नई वैक्सीन” “नया इलाज”,”क्रांतिकारी शोध”- “इंटरोमिक्स” कैंसर वैक्सीन।
साथियों बात अगर हम शोध का दायरा और वैक्सीन का निर्माण व ट्रायल के प्रारंभिक नतीजों की करें तो,रूसी नेशनल मेडिकल रिसर्च रेडियोलॉजिकल सेंटर एवं एंगेल्हार्डट इंस्टिट्यूट ऑफ़ मोलेक्युलर बायोलॉजी (रूसी विज्ञान अकादमी) द्वारा मिलकर विकसित की गई “इंटरोमिक्स ” वैक्सीन का आधार वही एम-आरएनए तकनीक है जो कोविड-19 वैक्सीन में प्रयोग हुई थी। इसकी खासियत है,यह व्यक्तिगत ट्यूमर जीनोमिक प्रोफ़िलिंग पर आधारित,पूर्णतया कस्टमाइज़्ड थेरेपी है। इसका मतलब है कि प्रत्येक मरीज के ट्यूमर की जीन-म्युटेशनल विश्लेषण के आधार पर वैक्सीन तैयार की जाती है ताकि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कैंसर कोशिकाओं को पहचान कर उन्हें लक्ष्य कर सके। यह प्रयास केवल वर्गगत प्रतिरक्षा (स्टैंडर्ड कैंसर वैक्सीन) से हटकर, सटीक, तेज और प्रभावी चिकित्सा का नेतृत्व करता है। ट्रायल के प्रारंभिक नतीजे–फेज-1 क्लिनिकल ट्रायल, जिसमें लगभग 48 स्वैच्छिक प्रतिभागियों को शामिल किया गया था,में मरीजों में ट्यूमर में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई और कोई गंभीर साइड-इफेक्ट्स नहीं दर्ज हुए। यह दुर्लभ उपलब्धि है, क्योंकि कैंसर उपचार में अक्सर कष्टप्रद स्वास्थ्य प्रभाव आते हैं,विशेषकर कीमोथेरेपी, रेडिएशन या सर्जरी में। ट्रायल में प्राप्त परिणामों के आधार पर दावा किया जा रहा है कि वैक्सीन सुरक्षित और अत्यंत प्रभावी सिद्ध हुई है।
साथियों बात अगर हम कोलोरेक्टल कैंसर पर पहली सफलता व दावे और दूसरी परीक्षण पोकियाँ की करें तो हम देखेंगे कि इंटरोमिक्स की पहली लक्षित उपयोगिता कोलोरेक्टल कैंसर (बड़ी आंत का कैंसर) पर केंद्रित रही। इस कैंसर का वैश्विक स्तर पर प्रसार और मृत्यु दर काफ़ी उच्च है।प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार,इंटरोमिक्स ने कोलोरेक्टल कैंसर से ग्रसित रोगियों में ट्यूमर सिकुड़ने और वृद्धि में बाधा डालने में सफलता हासिल की है।दावे और दूसरी परीक्षण पोकियाँ-रूसी एजेंसी एफएमबीए (फेडरल मेडिकल एंड बायोलॉजिकल एजेंसी) ने घोषणा की है कि कई वर्षों की अनुसंधान अवधि और कम से कम तीन साल के अनिवार्य प्रीक्लिनिकल अध्ययनों के बाद अब यह वैक्सीन “उपयोग के लिए तैयार” है,लेकिन “आधिकारिक अप्रूवल” अभी अग्रसर है।रिपोर्ट अनुसार, ट्यूमर की वृद्धि दर में 60 पर्सेंट से 80 पर्सेंट तक की गिरावट दिखाई गई और जीवनकाल में सुधार भी हुआ।
साथियों बात अगर हम अगली चुनौतियों: ग्लोबल ज़रूरतों और अवरोधों पर नजर डालकर समझने की करें तो, वैश्विक शोध जगत में इस खोज को एक संभावित गेम-चेंजर माना जा रहा है। अगर अगले चरण के ट्रायल—फेज -2, फेज-3,में यह वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी साबित होती है, तो यह कैंसर उपचार के आसपास के परिदृश्य को बदलने का दम रखती है। हालांकि, वैज्ञानिक विश्व में सामान्यतः “फेज-1 की सफलता” अंतिम मंज़िल नहीं होती। फेज-2 और फेज-3 के बड़े, व्यापक ट्रायल्स, दीर्घकालिक प्रभाव, उत्पादन- लागत, वितरण व्यवस्था और नियामकीय मंज़ूरी जैसीचुनौतियाँ अभी बाकी हैं।फिर भी, आज 8 सितंबर 2025 की तारीख में, वैश्विक स्वास्थ्य और कैंसर अनुसंधान की दुनिया में रूस की यह खोज निश्चित रूप से एक उल्लेखनीय और प्रेरणादायी मोड़ बन चुकी है, जो नई उम्मीदों को जन्म देती है।यह व्यक्तिगत, मुँहतोड़ और साइड- इफेक्ट- रहित चिकित्सा का भविष्य का प्रवाह हो सकता है।भारत जैसे देशों में, जहाँ कैंसर की बीमारी आर्थिक बोझ और चिकित्सा पहुँच की चुनौतियों के बीच एक गंभीर समस्या है, ऐसी सफलता आशा की किरण बन सकती है,बशर्ते लागत, इंफ़्रास्ट्रक्चर और नियामक अवरोधों का समाधान हो सके।भारत में कैंसर के इलाज पर अनुमानत: 29,000 करोड़ रूपए सालाना खर्च होता है, जिससे अनेक परिवार आर्थिक रूप से बुरी तरह प्रभावित होते हैं।बच्चों, वृद्धों और समाज पर प्रभाव- कैंसर कोई उम्र-विशिष्ट बीमारी नहीं है,यह बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक किसी को भी प्रभावित कर सकता है। कई बार इस बीमारी से युवा जीवन की संभावना छिन जाती है, या जो लोग बच जाते हैं, उन्हें सारा जीवन आर्थिक और मानसिक संघर्ष करना पड़ता है। अगर इंटरोमिक्स जैसी वैक्सीन हर उम्र वर्ग में सफल हो जाती है, तो यह मानवीय विकास का सबसे महान योगदानों में से एक बन सकती है।
साथियों बात अगर हम वैश्विक परिप्रेक्ष्य: इतिहास में सामने आई अन्य कोशिशें तथा डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों की करें तो,पहले भी कुछ देशों और संस्थानों ने कैंसर वैक्सीन विकास की पहल की,जैसे अमेरिका कीऑनकफज (विटेस्पेन) नामक वैक्सीन, जिसे रूस ने भी अप्रूवल दिया था (2008 में शुरुआती-स्टेज किडनी कैंसर के लिए)। लेकिन इसके बावजूद वैश्विक स्तरपर यह वैक्सीन व्यावसायिक रूप से सफल नहीं हो सकीइसलिए इंटरोमिक्स की सफलता सिर्फ एक वैज्ञानिक अध्याय नहीं, बल्कि एक व्यापक वैश्विक चुनौती और संभावनाओं का भाग हो सकती है। यदि व्यापक परीक्षणों और वैश्विक मान्यता में यह सफल हो जाती है, तो चिकित्सा जगत की चुनौतियाँ और उपचार दृष्टिकोण दोनों परिवर्तित हो सकते हैं।वैश्विक दृष्टिकोण से,विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, प्रत्येक वर्ष लगभग 2 करोड़ नए कैंसर के मामलों का सामना विश्व करता है, और करीब 1 करोड़ कैंसर के कारण मर जाते हैं।
अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे किरूस का लाइलाज़ बीमारी कैंसर को वैक्सीन से हराने की क्रांतिकारी खोज़ -“नई वैक्सीन”,”नया इलाज”, “क्रांतिकारी शोध”इंटरोमिक्स कैंसर वैक्सीनएक नई उम्मीद “इंटरोमिक्स” कैंसर वैक्सीन:- वैश्विक शोध जगत में इस खोज को एक संभावित गेम-चेंजर माना जा रहा है।

Editor CP pandey

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