ज्यादातर बच्चों का अगली कक्षाओं में हो चुका है दाखिला
आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के अभिभावक प्रवेश और अन्य खर्चों को लेकर .दिख रहे चिंतित
मऊ ( राष्ट्र की परम्परा ) गर्मी की लंबी छुट्टियों के बाद स्कूलों के फिर से खुलने की आहट पाकर बच्चे तैयारियों में जुट गए हैं। अलबत्ता उन बच्चों का मन जिनकी पढ़ाई – लिखाई में कुछ खास अभिरुचि नहीं है, महीनों तक चली छुट्टियों के बावज़ूद नहीं भर सका है | गत अप्रैल माह में नए शैक्षिक सत्र की शुरुआत पर निजी विद्यालयों में दाखिला लेने वाले समृद्ध घरों के बच्चों के लिए कापी – किताब , स्कूल बैग व अन्य सहायक सामग्रियाँ पहले ही खरीदी जा चुकी हैं | जबकि आर्थिक रूप से बेहद कमजोर छात्रों के अभिभावक अपने बच्चों के प्रवेश को लेकर अभी भी अनिर्णय की स्थिति में है | चूँकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तथा सुविधाजनक शुल्क की आस में प्रत्येक वर्ष लगभग 40से 50 प्रतिशत छात्र ( अगली कक्षा में पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद ) अपने वर्तमान विद्यालय को अलविदा कह दूसरे विद्यालयों की ओर रुख करते देखे जाते हैं | जहाँ तक सरकारी स्कूलों की बात है शैक्षिक स्तरोन्नयन संबंधी सरकार के तमाम दावों को अभी तक जनसामान्य की स्वीकार्यता नहीं मिल सकी है | लिहाजा अभिभावकों की दृष्टि में निजी विद्यालय मँहगी फीस और मँहगी पाठ्य-पुस्तकों के बावजूद सरकारी विद्यालयों की तुलना में काफी आगे हैं |
उधर माली हालत खस्ती होने के बावज़ूद बच्चों के भविष्य को लेकर सचेष्ट रहने वाले अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों का समय से एडमिशन तो करा चुके हैं लेकिन पुस्तकों की अनुपलब्धता के कारण बच्चों के साथ – साथ खुद भी परेशान नजर आ रहे हैं। हालांकि नए सत्र के आरंभिक महीनों में किताबों के लिए बच्चों का दुकान – -दुकान भटकना कोई नई बात नहीं है | खैर, अब जब स्कूलों के खुलने में चंद रोज ही बाकी रह गए हैं बच्चे अपनी तैयारियों में मशगूल हैं तो अभिभावक भी अपने पाल्यों के प्रवेश (अभी तक जिनका नहीं हो सका है ) सहित उनकी अन्य जरूरतों को लेकर काफी चिंतित नजर आ रहे हैं | उधर छुट्टियों के दौरान जो बच्चे रिश्ते दारी अथवा अन्य स्थानों पर घूमने – फिरने गए थे अब वे भी अपने घरों को वापस लौट आए हैं | फिलहाल बच्चों को अपने बंद स्कूलों के खुलने व बिछड़े दोस्तों से मिलने का बेहद बेसब्री से इंतजार है |
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