देवरिया।राष्ट्र की परम्परा
जनपद में पुरवा स्थित डी एस एस स्कूल के समीप श्रीमहालक्ष्मी मंदिर प्रांगण में पूज्य राघव ऋषि की भागवत कथा का भव्य शुभारम्भ हुआ। पूर्वाह्न 11 बजे कलश यात्रा देवरही मंदिर प्रारम्भ होकर नगर भ्रमण करते हुए कथास्थल पर गाजे बाजे के साथ पहुंची। यात्रा में पूज्य राघव ऋषि सहित पीले वस्त्र में 201 महिलाएं गंगाजल भरे कलश लिए हुए चल रहीं थी। भक्त श्रद्धालु श्रीराम ध्वजा, हनुमान ध्वजा एवं श्याम ध्वजा सहित हर्षोल्लास से मंगल कलश यात्रा में सहभागी बनें। भागवत जी की पोथी मुख्य यजमान राम अशीष यादव एवं दैनिक सहायक यजमान भरत अग्रवाल सपत्नीक सिर पर धारण किए हुए चल रहे थे। राधाकृष्ण की मनोरम झांकी यात्रा सबको आनन्द प्रदान कर रही थी।
इसके उपरान्त अनेक श्रद्धालु गणमान्यों ने व्यासपीठ पूजन कर भागवत सहित व्यासपीठ पर विराजमान अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वक्ता श्रीविद्या सिद्ध ज्योतिष सम्राट काशी निवासी पूज्य राघव ऋषि का सविधि पूजन किया।
कथा के माध्यम से सच्चिदानंद प्रभु की प्राप्ति होती है जो आनंद हमारे भीतर है उसे जीवन में किस प्रकार प्रकट करें यही भागवत शास्त्र सिखाता है जैसे दूध में मक्खन रहता है फिर भी वह दिखाई नहीं देता मंथन करने पर मिल जाता है इसी प्रकार मानव मन को मंथन करके आनंद प्रकट करना है मनुष्य जीवन का लक्ष्य है परमात्मा से मिलना उसका जीवन सफल है जिसने प्रभु को प्राप्त किया।
भागवतशास्त्र आदर्श दिव्य ग्रन्थ है घर में रहकर के भगवन को कैसे प्राप्त करें इस शास्त्र में सिखाया गया है गोपियों ने घर नहीं छोड़ा घर गृहस्थी का काम करके भी भवन को प्राप्त कर सकीं एक योगी जो आनंद समाधी में मिलता है वही आनंद आप घर में रहकर भी प्राप्त कर सकते हैं।
पूज्य राघव ऋषि के एकमात्र सुपुत्र सौरभ ऋषि ने “गौरी के नंदन की” का गायन किया तब श्रद्धालुगण मग्न हो उठे भागवत की रचना व्यासजी ने की है परन्तु इसका लेखन श्रीगणेश जी ने किया है कथा का माहात्म्य बताते हुए कहा की जिस समय शुकदेव जी परीक्षित जी कथा सुना रहे थे उस समय स्वर्ग से देवता अमृत भरा कलश लेकर प्रकट हुए और उन्होंने कहा की स्वर्ग का अमृत हम राजा को देते हैं जिस यह अमर हो जायेंगे बदले में कथामृत आप हमको प्रदान करें शुकदेव जी ने राजन से पूछा तुम्हें कौन सा अमृत पीना है उत्तर में राजा ने कहा की स्वर्ग का अमृत पीने से पुण्यों का क्षय होता है परन्तु कथमृत पीने से जन्म जन्मांतर के पापों का क्षय होता है व् जीव पवित्र हो जाता है अतः मैं इस कथामृत का ही पान करूंगा मनुष्य के भीतर ज्ञान और वैराग्य जो सोये हुए हैं उन्हें जागृत करने के लिए यह कथा है इस हृदयरूपी वृन्दावन में कभी कभी वैराग्य जागृत होता है परन्तु स्थाई नहीं रहता है उसे स्थायित्व इस कथा से मिलता है।
कथा के माहात्म्य की चर्चा करते हुए पूज्य राघव ऋषि ने बताया की तुंगभद्रा नदी के किनारे आत्मदेव नाम का ब्राह्मण रहते था उसकी पत्नी धुन्धुली क्रूर स्वाभाव की थी पुत्रहीन होने कारण एक दिन आत्महत्या करने के लिए जाता है मनुष्य शरीर ही तुंगभद्रा है इसमें जीवात्मा रुपी आत्मदेव निवास करता है तर्क कुतर्क करने वाली बुद्धि ही धुन्धुली है किसी संत की कृपा से विवेकरूपी पुत्र का जन्म होता है जो जीव का कल्याण करता है धुन्धुली का पुत्र धुंधुकारी अनाचारी था जो व्यक्ति अनाचारी होता है वह क्रमशः रूप रास गंध शब्द एवं स्पर्श रुपी पांच वेश्याओं से फँस जाता है जो इस जीवात्मा की हत्या कर देती है फलतः वह प्रेत योनि में जाता है जो भागवत शास्त्र के माध्यम से मुक्त होता है।
कथा के अंत में ऋषि सेवा समिति, देवरिया के सर्वश्री शत्रुघ्न अग्रवाल, कामेश्वर सिंह, अखिलेश त्रिपाठी, लालबाबू श्रीवास्तव, अशोक श्रीवास्तव, नन्दलाल गुप्ता, मोतीलाल कुशवाह, धर्मेंद्र जायसवाल, विजय केजरीवाल, अजय केजरीवाल, सुमित अग्रवाल, अश्वनी यादव, कामेश्वर कश्यप, हृदयानंद मिश्र, हृदयानंद मणि आदि अनेक भक्तों ने प्रभु की भव्य आरती की।
कोषाध्यक्ष भरत अग्रवाल द्वारा बताया गया कि कल की कथा में शुकदेव आगमन एवं भगवान कपिल देव सहित भक्त श्रीध्रुव की भक्ति का प्रसंग रहेगा।
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