बलिया(राष्ट्र की परम्परा)l श्वेता आज बहुत खुश थी। क्योंकि आज रक्षाबंधन का पावन त्यौहार था। साल भर इंतजार करने के बाद आज यह दिन आया था।श्वेता साल भर से भाई से कहती रही कि इस बार रक्षाबंधन पर कोई बड़ा उपहार लूंगी। श्वेता इन्हीं ख्यालों में खोई जाने क्या-क्या सोचती रहती थी। श्वेता ससुराल से जल्दी-जल्दी तैयार होकर मायके के लिए निकल पड़ी और मायके पहुंच कर देखती है कि भाई तो बिना उसे बताएं ही कहीं चला गया। वह मन ही मन बहुत दुखी थी और सोचने लगी कि भाई को अचानक क्या हो गया। वह तो बदल गया अब मैं उससे कभी बात नहीं करूंगी उसने बिना राखी बंधाए और बिना मुझे बताएं चुपचाप चला गया। जरूर उसके मन में कुछ चल रहा होगा। जाने दो कोई बात नहीं मैं भी कम नहीं हूं आज के बाद कभी नहीं आऊंगी उसे राखी बांधने। इतनी बड़ी बेइज्जती की है मेरी। अरे जाना ही था तो मुझे बता कर जाता इसी उहापोह में घिरी श्वेता किसी तरह समय बिता रही थी। कि अचानक शाम 5:00 बजे डोर बेल बजती है। श्वेता बुझे मन से दरवाजा खोलने गई तो सामने भाई को देख हल्का सा मुस्कुरा कर बोली कहां चले गए थे मैं तुमसे बात नहीं करूंगी। तब भाई ने कहा जल्दी से राखी बांधो और यह देखो तुम्हारे लिए क्या लाया हूं। गले की सुंदर सी सोने की चेन जेब से निकलकर श्वेता के गले में पहना देता है। श्वेता की आंखों में खुशी के आंसू थे। श्वेता ने कहा मेरा भाई लाखों में एक है। सारी गलतफहमी चंद मिनटों में दूर हो गई। श्वेता ने मजाकिया अंदाज में कहा भैया अगले रक्षाबंधन की तैयारी आज से ही शुरू कर दो। दोनों खुशी से हंसने लगते हैं। वास्तव में रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के बीच बहुत सी गलतफहमी को दूर करता है। और दोनों के बीच प्रेम उत्पन्न करता है।
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